♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गम के निशां..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले!
कुछ अपनों ने मेरे दिल के, टुकड़े देखो खूब उछाले!
अपने टूटे दिल की हालत, देख यकीं होता है मुझको,
प्यार उन्हीं को मिलता जग में, जो होते हैं किस्मतवाले!
आह सुने न कोई किसी की, कोई किसी का दुख न जाने!
मिन्नत कितनी भी कर लो पर, नहीं निवेदन कोई माने!
दर्द की पथरीली राहों पर, चलकर देखो पड़े हैं छाले!
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले...
जिसको अपना समझा जाये, वही मिटाने को निकला है!
मानवता और अपनेपन में, आग लगाने को निकला है!
"देव" नहीं मालूम जहाँ में, दिल की इज़्ज़त शेष रहेगी,
जिससे दिल का रिश्ता जोड़ा, वही जलाने को निकला है!
धन, दौलत के मंसूबों में, अपनेपन को मार दिया है!
कुछ लोगों ने आड़ प्यार की, लेकर के व्यापार किया है!
कल तक पावन कहता था जो, आज मुझी में दोष निकाले!
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले!"
...................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-२३.०७ २०१४
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले!
कुछ अपनों ने मेरे दिल के, टुकड़े देखो खूब उछाले!
अपने टूटे दिल की हालत, देख यकीं होता है मुझको,
प्यार उन्हीं को मिलता जग में, जो होते हैं किस्मतवाले!
आह सुने न कोई किसी की, कोई किसी का दुख न जाने!
मिन्नत कितनी भी कर लो पर, नहीं निवेदन कोई माने!
दर्द की पथरीली राहों पर, चलकर देखो पड़े हैं छाले!
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले...
जिसको अपना समझा जाये, वही मिटाने को निकला है!
मानवता और अपनेपन में, आग लगाने को निकला है!
"देव" नहीं मालूम जहाँ में, दिल की इज़्ज़त शेष रहेगी,
जिससे दिल का रिश्ता जोड़ा, वही जलाने को निकला है!
धन, दौलत के मंसूबों में, अपनेपन को मार दिया है!
कुछ लोगों ने आड़ प्यार की, लेकर के व्यापार किया है!
कल तक पावन कहता था जो, आज मुझी में दोष निकाले!
निशां पड़े आँखों के नीचे, ग़म के गहरे काले काले!"
...................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-२३.०७ २०१४