Friday, 7 November 2014

♥वेदना का जहर(मौन)..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥वेदना का जहर(मौन)..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं। 
हर्ष नहीं है पास हमारे, हम दुख की सरगम गाते हैं। 
पढ़ी किताबें जितनी अब तक, उनमे ये ही लिखा हुआ है,
दुख, पीड़ा के बाद में देखो, खुशियों वाले दिन आते हैं!

इसीलिए मैं यही सोचकर, अपने आंसू पी लेता हूँ। 
तन्हा तन्हा बहुत अकेला, होकर देखो जी लेता हूँ। 

बुरे समय में देखो अपने भी, राहों से बच जाते हैं। 
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं... 

जिनको है अपमान की आदत, वो मेरा क्या मान करेंगे। 
नहीं मदद वो कर सकते हैं और न वो एहसान करेंगे। 
"देव" वो मुझको आरोपित कर, छप लें बेशक अख़बारों में,
लेकिन अपनी रूह के दुख का, वो कैसे अनुमान करेंगे। 

छोड़ दिया सब कहना सुनना, किसी से अब फरियाद नहीं है। 
उनसे अब क्या आस लगाऊँ, जिनको मेरी याद नहीं है। 

जहर वेदना का पीकर के, नींद में हम भी सो जाते हैं। 
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं। "

.................चेतन रामकिशन "देव"……………..
दिनांक-०८.११.२०१४