♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बादल के आंसू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह भाव से पीड़ित होकर, बादल के भी आंसू बरसे!
बादल के प्यासे नैना भी, सखी तेरे दर्शन को तरसे!
जिधर भी देखो उसी दिशा में, आंसू की नदियाँ बहती हैं!
सखी न जाने कब आएगी, मन ही मन अपने कहती हैं!
बादल का रंग तन्हाई में, "देव" तरसकर हुआ है काला,
कुछ कहने को शब्द नहीं हैं, ये नदियाँ चुप चुप रहती हैं!
इंतजार में सखी तुम्हारे, बीत गए हैं कितने अरसे!
विरह भाव से पीड़ित होकर, बादल के भी आंसू बरसे!"
......................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-२८.०३.२०१३