Monday, 22 April 2013

♥♥तुम्हारी समझ...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी समझ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हे समझना है जो समझो, पक्ष हमारा नहीं जरुरी!
हाँ ये सच है बिना तुम्हारे, ये जीवन की डगर अधूरी!

मैंने तुमको मानवता के नाते, अपना मान लिया था!
साथ तुम्हारे खुश रहने का, अवसर मैंने जान लिया था!
तेरे साथ चाहता था क्यूंकि, "देव" तेरा कद था नूरानी,
मैंने तेरे अपनेपन से, इतना तो पहचान लिया था!

नहीं पता के तुमने मुझसे, क्यूँ कर ली मीलों की दूरी!
तुम्हे समझना है जो समझो, पक्ष हमारा नहीं जरुरी....

शायद रिश्तों की दुनिया ही, तुमको बड़ी अनूठी लगती!
इन रिश्तों के आगे तुमको, मानवता भी झूठी लगती!
पर मेरा दिल कहता है के, मानवता सबसे ऊपर है,
लेकिन तुमको मानवता की, डोर हमेशा टूटी लगती!

बुरे वक़्त में कब होती है, किसी के दिल की हसरत पूरी!
तुम्हे समझना है जो समझो, पक्ष हमारा नहीं जरुरी!"

...................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-२२.०४.२०१३

♥♥शब्दों की कराह.♥♥




♥♥शब्दों की कराह.♥♥♥♥
शब्दों का मन कराह रहा है,
कुछ कह पाना भी मुश्किल है!
आज का मानव हुआ है दानव,
नजर मिलाना भी मुश्किल है!
कुदरत की अनुपम कृति को,
नोंच रहें हैं, काम पिपासु,
पीड़ा की व्यापक क्षमता को,
अब बतलाना भी मुश्किल है!

सजा मौत की सही है लेकिन,
ये बहशीपन चलेगा कब तक!
यहाँ आदमी दानव बनकर,
मानवता को छलेगा कब तक!
रोज रोज हर चौराहे पर,
नारी की अस्मत लुटती है,
नहीं पता के इस नारी को,
इज्ज़त का हक, मिलेगा कब तक!

तन पे छाले पड़े हमारे,
अब दिखलाना भी मुश्किल है!
पीड़ा की व्यापक क्षमता को,
अब बतलाना भी मुश्किल है....

दंड नहीं है, श्राप नहीं है,
नारी होना पाप नहीं है!
नारी तो है खिले सुमन सी,
वो दुख का संताप नहीं है!
"देव" यहाँ पर देखो अब तुम,
नर-नारी को एक नजर से,
नारी का अस्तित्व है व्यापक,
वो कोई धुंआ, भाप नहीं है!

रोम रोम में दर्द है गहरा,
बदन हिलाना भी मुश्किल है!
पीड़ा की व्यापक क्षमता को,
अब बतलाना भी मुश्किल है!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-२२.०४.२०१३