Tuesday 4 February 2014

♥♥जब जी चाहा...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जब जी चाहा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब जी चाहा दिल तोड़ा है, जब जी चाहा मन कुचला है!
कभी सजाया गुलदस्ते में, कभी हमारा तन कुचला है!
खुद का दामन पाक बताकर, कहते हैं नापाक मुझे वो,
कभी उजाड़ा फुलवारी को, कभी ख़ुशी का वन कुचला है!

नहीं पता इतनी बेदर्दी, कैसे दिल में भर लेते हैं!
लोग यहाँ अपने हाथों से, क़त्ल किसी का कर लेते हैं!
झूठे आंसू खूब बहाकर, दिखलायें झूठा अपनापन,
लोग यहाँ अपने मतलब में, प्यार का सौदा कर लेते हैं!

कोई सुने न चीख किसी की, कानों में शीशा पिघला है!
जब जी चाहा दिल तोड़ा है, जब जी चाहा मन कुचला है!

लोग यहाँ पत्थर बनकर के, दिल का शीशा चटकाते हैं!
अपनी राहें सही करेंगे, पर लोगों की भटकाते हैं!
"देव" न जाने क्यूँ दुनिया की, नजर में है बेजान मेरा दिल,
दुनिया वाले मेरे दिल को, ठोस सड़क पर छिटकाते हैं!

नहीं संभाला मुझे किसी ने, पैर मेरा जब भी फिसला है!
जब जी चाहा दिल तोड़ा है, जब जी चाहा मन कुचला है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०४.०२.२०१४