Monday, 26 November 2012

♥निर्धन (पीड़ा का पर्याय)♥


♥♥♥♥♥निर्धन (पीड़ा का पर्याय)♥♥♥♥♥
ग्राम देवता पीड़ा में है, श्रमिक भी है तंग!
इनका जीवन तिमिर भरा है, नहीं हर्ष के रंग!
भूख, शीत से मरते रहते, रोज ही निर्धन लोग,
देश के नेता फिर भी देखो, नहीं हैं इनके संग!

मनरेगा की मजदूरी भी होती भी इतनी अल्प!
कैसे उस मजदूर के घर में होगा कायाकल्प!

नेता इनका हाल देखकर, कभी न होते दंग!
ग्राम देवता पीड़ा में है, श्रमिक भी है तंग...

महंगाई से खिला खिला, देश का हर बाजार!
रोज ही देखो दामों बढाती, ये अंधी सरकार!
नेताओं के घर में होता, उत्सव का माहौल,
निर्धन की आँखों से बहती, केवल अश्रुधार!

रात रात में बढ़ जाते हैं, बाजारों में दाम!
महंगाई ने छीन लिया है, लोगों का आराम! 

आम आदमी के जीवन की खोने लगी उमंग!
ग्राम देवता पीड़ा में है, श्रमिक भी है तंग...

उत्पीड़न से बचना है तो करो जरा संघर्ष!
इस तरह से चुप रहने से, नहीं मिलेगा हर्ष!
"देव" तुम्हें अब बनना होगा, साहस का प्रतीक,
हाथ पे हाथ धरे रहने से, नहीं कोई निष्कर्ष!

आम आदमी कर लो मन में, शक्ति का संचार!
बिन शक्ति के होगा उन पर यूँ ही अत्याचार!

अधिकारों को पाना है तो करनी होगी जंग!
ग्राम देवता पीड़ा में है, श्रमिक भी है तंग!"

"
आम आदमी-देश का आम आदमी, चाहें वो किसान हो या मजदूर, या फिर माध्यम वर्ग का जीवन यापन करने वाला व्यक्ति, हर किसी को कभी महंगाई तो कभी सरकार के नए नए गलत नियमों की मार झेलनी पड़ती है! जब तक आम आदमी नहीं जागेगा तब तक ये उत्पीड़न होता रहेगा..इसीलिए युद्ध की तैयारी करनी ही होगी! तो आइये चिंतन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२७.११.२०१२ 

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!





♥दर्द की मुस्कान..♥


♥♥♥♥♥♥♥दर्द की मुस्कान..♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं जब से अपने आप को समझाने लगा हूँ!
उस दिन से दर्द में भी मुस्कुराने लगा हूँ!

दुनिया में हर कोई नहीं हमदर्द है यारों,
ये सोचकर के सबसे गम छुपाने लगा हूँ!

क्या हो गया जो आज मुझे हार मिली है,
कल जीतने के ख्वाब फिर सजाने लगा हूँ!

दुनिया में मोहब्बत से बड़ी कोई शै नहीं,
मैं सबको मोहब्बत का गुर सिखाने लगा हूँ!

ए "देव" मुझे अपनी भी कमियों का पता है,
मैं अपनी नजर खुद से ही मिलाने लगा हूँ!


........... (चेतन रामकिशन "देव") .........