Sunday, 20 July 2014

♥♥सच की तपस्या..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सच की तपस्या..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है!
उनको हिंसा ही भाती है, जिन्हें प्रेम का ज्ञान नहीं है!
जो अपने उद्देश्य लोभ में, छल करता है मानवता से,
वो सब कुछ हो जाये बेशक, लेकिन वो इंसान नहीं है!

मानवता के चिन्हों पर चल, जो सबका हित कर जाते हैं !
वही लोग देखो दुनिया में, मरकर भी न मर पाते हैं! 

खुद की खातिर जी लेना ही, नेकी की पहचान नहीं है!
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है...

फूलों की ख़्वाहिश है सबको, काँटों पे चलना न चाहें!
चाहत रखें उजालों की पर, दीपक बन जलना न चाहें!
बिना कर्म के ही मिल जाये, दुनिया की सारी धन दौलत,
नहीं धूप में बहे पसीना, नहीं शीत में गलना चाहें!

लेकिन सिर्फ ख्यालों में ही, महल देखने से नहीं मिलते!
बिन मेहनत के इस दुनिया में, ख्वाबों के गुलशन नहीं खिलते!

बाहर ढोंग करेंगे घर में, परिजन का सम्मान नहीं हैं!
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है....

जो नफरत की आग में जलकर, विष के गोले बरसाते हैं!
ऐसे दुर्जन जन लोगों के, नहीं दिलों में वस पाते हैं!
"देव" जहाँ में लाख, करोड़ों यहाँ आदमी फिरते हैं पर,
बिना दया और प्रेम भाव के, नहीं वो इन्सां बन पाते हैं!

केवल अख़बारों में छपकर, हमदर्दी का नाम करेंगे!
और हक़ीक़त में वो देखो, जग में काला काम करेंगे!

बस थोथी बातें कर देना, पीड़ा का अवसान नहीं है!
घोर तपस्या सच की करना, काम कोई आसान नहीं है!"

.....................चेतन रामकिशन "देव".........................
दिनांक-२१.०७ २०१४ 

♥♥दरिंदगी..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥दरिंदगी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रूह बेचैन बहुत दिल को तड़प होती है!
देख के ऐसे नज़ारे, ये नज़र रोती है!

वो दरिंदे यहाँ औरत को लूट कर मारें,
और खाकी यहाँ गूंगों की तरह सोती है!

अपने मतलब के लिए खून तक बहा दे जो,
आदमी की यहाँ फितरत ही बुरी होती है!

कोई कानून नहीं देता दरिंदों को सजा,
कब्र में भी वो यही सोच कर के रोती है!

लाश नंगी थी यहाँ, उसका बन गया धंधा,
आज दीवार पे हर, वो ही टंगी होती है!

जानवर सा है आदमी, है दरिंदा, बहशी,
उसकी सूरत भले मासूम, भली होती है!

"देव" ये दर्द है इतना के, क्या बताऊँ मैं,
मेरे शब्दों को भी मुझ संग, ये दुखन होती है! "

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२०.०७ २०१४