♥♥♥♥♥♥♥♥दरिंदगी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रूह बेचैन बहुत दिल को तड़प होती है!
देख के ऐसे नज़ारे, ये नज़र रोती है!
वो दरिंदे यहाँ औरत को लूट कर मारें,
और खाकी यहाँ गूंगों की तरह सोती है!
अपने मतलब के लिए खून तक बहा दे जो,
आदमी की यहाँ फितरत ही बुरी होती है!
कोई कानून नहीं देता दरिंदों को सजा,
कब्र में भी वो यही सोच कर के रोती है!
लाश नंगी थी यहाँ, उसका बन गया धंधा,
आज दीवार पे हर, वो ही टंगी होती है!
जानवर सा है आदमी, है दरिंदा, बहशी,
उसकी सूरत भले मासूम, भली होती है!
"देव" ये दर्द है इतना के, क्या बताऊँ मैं,
मेरे शब्दों को भी मुझ संग, ये दुखन होती है! "
.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२०.०७ २०१४
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