Thursday, 13 September 2012

♥♥♥♥♥♥हिंदी एक महीप...♥♥♥♥♥♥♥♥
भाषायें तो बहुत हैं किन्तु, हिंदी एक महीप!
आओ जलायें सारे जग में, हम हिंदी का दीप!

गलत नहीं इस जीवन में, बहुभाषा का ज्ञान!
किन्तु अपने हाथ से न हो, हिंदी का अपमान
हिंदी के आंचल में सिमटी, भारत की संस्कृति,
देश के माथे की बिंदी का, आओ करें सम्मान!

जिससे मोती स्फुट होता, हिंदी है वो सीप!

भाषायें तो बहुत हैं किन्तु, हिंदी एक महीप!

बड़ी मधुरता स्फुट करता, हिंदी का प्रयोग!
हिंदी को न मानो मित्रों, पिछड़ेपन का रोग!
अन्य बोलियों से ये हिंदी, न रखती है बैर,
हिंदी भी प्रकट करती है, प्रेम तत्व का योग!

शब्दकोष को उज्जवल करती, हिंदी बन प्रदीप!
भाषायें तो बहुत हैं किन्तु, हिंदी एक महीप!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१४ सितम्बर २०१२,हिंदी दिवस!

♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी जरुरत♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सूनी घर की चाहरदिवारी, सूना घर का आंगन!
सूख गया तुलसी का पौधा, टूट गया है दर्पण!
कमरे की सब तस्वीरें भी, चुप चुप सी रहती हैं,
रंग पड़ गए फीके उनके, सिमट गया है योवन !

मैं अपना क्या हाल बताऊ, जान जरा सी नहीं बदन में!
दिन कटता है पल पल तन्हा, रात कट रही करुण रुदन में!

खिड़की के परदे खिसका कर, हाथ को चेहरे तले लगाकर,
अपनी दोनों अंखियो से मैं, अश्कों की धारा बरसा कर!

पल-पल, लम्हा, मिनट-मिनट, तेरा  इंतजार करता हूँ!
पैमाने से नप ना पाय, तुम्हें इतना प्यार करता हूँ………

बिन तेरे ये सुबह अधूरी, तुम बिन है ये शाम अधूरी!
कौनसी ऐसी बात पे तुमने, कर डाली मीलों सी दूरी!
तुम कहती थी जीते जी मैं, साथ नहीं छोडूंगी पल को,
कौन सी ऐसी बात हुयी जो, जाना इतना बना जरुरी!

मैं अपना क्या हाल बताऊ, जान जरा सी नहीं बदन में!
गर्दन रखकर सिरहाने पे, ताकता रहता दूर गगन में!

चेहरे पर जुल्फें बिखराकर, दूर दूर तक नयन घुमाकर!
पैर में छाले पड़ जाने पर, चरण पादुका हाथ उठाकर!

पल-पल, लम्हा, मिनट-मिनट, तेरा  इंतजार करता हूँ!
पैमानों से नप ना पाय, तुम्हें इतना प्यार करता हूँ………



"इंतजार की एक सीमा होती है, जब इंतजार हद से ज्यादा बढ़ जाता है और द्वितीय पक्ष, प्रथम पक्ष की भावनाओं को नहीं समझते हुए दूर रहता है, तब निश्चित रूप से वेदना होती है!

यही वेदना उकेरने का प्रयास-----चेतन रामकिशन (देव ) "