♥♥♥♥♥कांच......♥♥♥♥♥♥
सोचकर रात फिर गुजारी है।
आँख दुखती है, सांस भारी है।
उसने बीवी का भी किया सौदा,
तौबा इतना बड़ा जुआरी है।
चंद सिक्कों में ही ईमान बिका,
कितनी पैसों की बेकरारी है।
कत्ल करता है सारे रिश्तों का,
आदमी आजकल शिकारी है।
टूटकर दिल भी कांच सा बिखरा,
"देव " अपनों ने चोट मारी है। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
सोचकर रात फिर गुजारी है।
आँख दुखती है, सांस भारी है।
उसने बीवी का भी किया सौदा,
तौबा इतना बड़ा जुआरी है।
चंद सिक्कों में ही ईमान बिका,
कितनी पैसों की बेकरारी है।
कत्ल करता है सारे रिश्तों का,
आदमी आजकल शिकारी है।
टूटकर दिल भी कांच सा बिखरा,
"देव " अपनों ने चोट मारी है। "
........चेतन रामकिशन "देव"……