Friday, 26 April 2019

♥♥खिड़कियां... ♥♥

♥♥♥♥♥खिड़कियां... ♥♥♥♥♥♥
सखी तेरे वापस आने की, सब उम्मीदें मंद हो गयीं।
जब तेरे घर का दरवाजा, सारी खिड़की बंद हो गयीं।
इतना निर्मोही होकर के, कैसे तूने फिर लिया मुंह,
हमसे पूछो, बिना तुम्हारे, साँसे भी पाबंद हो गयीं।

गुज़र रही है क्या क्या दिल पर, क्या बतलायें, क्या दिखलायें।
ये तो सच है प्यार है तुमसे, ग़म सहकर भी क्या झुठलायें।
लेकिन मैं स्तब्ध बहुत हूँ, कैसे मार्ग बदल जाते हैं।
मरते दम तक का वादा कर, बचकर लोग निकल जाते हैं।

कसमें टूटीं, वादे टूटे, झूठी सब सौगंध हो गयीं।
सखी तेरे वापस आने की, सब उम्मीदें मंद हो गयीं।

प्यार, वफ़ा के सारे किस्से और कहानी मौन हुयी हैं।
मेरी ऑंखें कल तक अपनीं, आज तुम्हीं को कौन हुयी हैं।
आज न जाने क्यों तुम अपनी, परछाईं से भाग रही हो।
कुछ नामी लोगों की खातिर, दिल के रिश्ते त्याग रही हो।

दुनिया में झूठी बातें भी, मानों अब गुलकंद हो गयीं। 
सखी तेरे वापस आने की, सब उम्मीदें मंद हो गयीं।

चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-२६ -०४ -२०१९