Friday 9 August 2013


♥♥♥♥♥♥♥♥♥समझोते की सौगात ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देश के आका चुप बैठे हैं, और सैनिक बेमौत मर रहे!
हम बस अपने हाथ जोड़कर, समझोते की बात कर रहे!
किन्तु समझोते की बातें, जिस दुश्मन को समझ न आये,
हम आखिर क्यूँ उस दुश्मन से, प्यार वफ़ा की बात कर रहे!

समझोते भी किये हैं हमने, लेकिन फिर भी मौत मिली है!
हम लोगों के घर में मातम, दुश्मन के घर धूप खिली है!

देख के झंडे में लिपटे शव, अश्कों के सैलाब गिर रहे!
देश के आका चुप बैठे हैं, और सैनिक बेमौत मर रहे…

प्यार वफ़ा की बातों को, जब दुश्मन अनदेखा करता है!
क्षमादान ऐसे अवसर पर, और भी उसको दृढ करता है!
समझोते को तय करके भी, हमने अब तक कुछ नहीं पाया,
और दुश्मन हम लोगों का, दामन यूँ ही छलनी करता है!

प्यार की भाषा उसे सुनाओ, जिसको प्यार समझ आता हो!
उसको प्यार नहीं देना जो, प्यार के तोहफे ठुकराता हो!

रो रोकर अपने हाथों से, चिता की हम तो राख भर रहे!
देश के आका चुप बैठे हैं, और सैनिक बेमौत मर रहे…

जिस भी देश के आकाओं का, अगर होंसला कम होता है!
उसी देश में निर्दोषों के, घर में ये मातम होता है!
"देव" प्यार उसको बांटों तुम, प्यार जो बदले में देता को,
दुश्मन को ये समझा दो के, निर्दोषों में दम होता है!

देश के आकाओं अब देखो, समझोते की बात भुला दो!
अपना घर फूँका है जिसने, उसके घर में आग लगा दो!

सच्चाई के साथ जहाँ है, क्यों लड़ने से खौफ कर रहे!
देश के आका चुप बैठे हैं, और सैनिक बेमौत मर रहे!"


"
समझोता, प्रेम, वफ़ा, अपनत्व, स्नेह-ये सब शब्द उस आत्मीय नीति के प्रतीक हैं, जो समर्पण की विषय वस्तु का हिस्सा हैं! हम प्रेम बांटते रहें और दुश्मन हमें हिंसा के खून में रंग जाये, तो कतिपय ऐसे प्रेम की नीति, सुखद नहीं हो सकती! देश के आकाओं को, निर्णय करना ही चाहिए, आखिर समझोते और प्रेम बाँटने से, सिर्फ मौत के बदले मिला क्या है?"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१०.०८.२०१३