♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेगुनाही की सज़ा..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!
क्या मेरी आँखों का बहता झरना तुमको नजर न आया!
क्यों बस अपनी अपनी कहकर, मुझको ये इलज़ाम दिया है,
एक पल को भी मेरा ये दिल, इस सदमे से उभर न पाया!
क्यों मानवता मरी मरी है, कोई दिल की नहीं सुन रहा!
सब रस्ते में कंकर फेंके, कोई कांटे नहीं चुन रहा!
दवा तलक भी न दी उसने, और दुआ भी कर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया.....
लोग यहाँ औरों को कीचड़, खुद को गंगाजल कहते हैं!
बस अपने को कहें सार्थक, औरों को निष्फल कहते हैं!
"देव" जहाँ में जिनकी नीति, होती है बस खुदगर्जी की,
वही लोग सच्चे इन्सां की, निर्मलता को छल कहते हैं!
घाव दिए हैं शब्द बाण से, जो जीवन भर नही भरेंगे!
सबक मिला है आज हमे ये, अब अपनायत नहीं करेंगे!
कितना घातक जहर ये देखो, अमृत से भी मर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!"
....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१८.०५.२०१४
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!
क्या मेरी आँखों का बहता झरना तुमको नजर न आया!
क्यों बस अपनी अपनी कहकर, मुझको ये इलज़ाम दिया है,
एक पल को भी मेरा ये दिल, इस सदमे से उभर न पाया!
क्यों मानवता मरी मरी है, कोई दिल की नहीं सुन रहा!
सब रस्ते में कंकर फेंके, कोई कांटे नहीं चुन रहा!
दवा तलक भी न दी उसने, और दुआ भी कर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया.....
लोग यहाँ औरों को कीचड़, खुद को गंगाजल कहते हैं!
बस अपने को कहें सार्थक, औरों को निष्फल कहते हैं!
"देव" जहाँ में जिनकी नीति, होती है बस खुदगर्जी की,
वही लोग सच्चे इन्सां की, निर्मलता को छल कहते हैं!
घाव दिए हैं शब्द बाण से, जो जीवन भर नही भरेंगे!
सबक मिला है आज हमे ये, अब अपनायत नहीं करेंगे!
कितना घातक जहर ये देखो, अमृत से भी मर न पाया!
क्या मेरा एहसास गलत था, जो मुझको मुज़रिम ठहराया!"
....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१८.०५.२०१४