Tuesday, 14 June 2011

♥♥♥ ♥♥प्रेमिका ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥प्रेमिका ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"तू प्रेरणा है ज्ञान की, तो रौशनी का दीप है!
मोती करे प्रदान जो, तू वो सुनहरा सीप है!
मेरे प्रेम का परिचय है, मेरे प्रेम का विस्तार है,
तू चन्द्र की धवला किरण, तू सूर्य का प्रदीप है!

तू ताल है, संगीत है, तू तो हमारा गीत है!
तू प्रेम का पर्याय है, तू तो हमारा मीत है!

प्रेम की रसधार को, मिलकर बहाना है हमे!
प्रेम बिन सूना है जग, सबको सिखाना है हमे.......

जूझ रहा था समस्याओं से, तुमने मुझको दिया सहारा!
डूब रही थी नौका मन की, उत्साहों का दिया किनारा!
मेरे पांव में शूल चुभे तो, तुमने घाव पे दवा लगाई,
जिस जीवन का अंत हो रहा, तेरे प्रेम ने उसे उभारा!

तू अंत है, आरम्भ है, तू ही दिवस, तू रात है!
तू सौम्य है, सोहार्द है, तू हर्ष की प्रभात है!

प्रेम की बौछार को, मिलकर गिराना है हमे!
प्रेम बिन सूना है जग, सबको सिखाना है हमे.......

मेरे रक्त की बूंद बूंद पर, नाम लिखा है साथी तेरा!
क्रोध नहीं रहता अब मन में, जब से प्रेम का हुआ वसेरा!
"देव" तुम्हारे प्रेम में मुझको, सीख मिली है सच्चाई की,
नीरसता की निशा नहीं है, प्रेम ने ऐसा किया सवेरा!

तू रजत सी है धवल, तू स्वर्ण जैसी पीत है!
तू प्रेम का पर्याय है, तू तो हमारा मीत है!

प्रेम के इस यान को, मिलकर उड़ाना है हमे!
प्रेम बिन सूना है जग, सबको सिखाना है हमे!"


"प्रेम, अनमोल है! शुद्ध प्रेम व्यक्ति को आत्मविश्वास से भर देता है! व्यक्ति, इस प्रेम के साथ अपने लक्ष्य भी पाने के लिए जुटा रहता है! तो आइये शुद्ध प्रेम करें-चेतन रामकिशन "देव"


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ भक्ति या अंधापन ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"ना करते मां-बाप की सेवा, पाषाणों का वंदन करते!
स्वयं रहेंगे छांव में लेकिन, उनके तन को नंगा रखते!
नहीं करेंगे हाथ से मेहनत, पत्थर के बुत पर सब छोडें,
मानव होकर रहें पशु से, यहाँ वहां बस चलते फिरते!

अपनी मेहनत त्याग के देखो, कर्महीन जो हो जाते हैं!
ऐसे लोग कहाँ इस जग में, कहाँ भला कुछ कर पाते हैं!

ये भक्ति है या अंधापन, मैं तो किंचित समझ ना पाया!
जिसके मन में विष होता है, उसी ने चन्दन तिलक लगाया............

गली गली हर चोराहे पर, अब धर्मों की खुली दुकानें!
जिनको ग्रन्थ का नाम ना मालूम, वही लगे उपदेश सुनाने!
खुद को पंडित कहते हैं वो हैं, जिनकी सोच है सदा कलुषित,
लोगों को वो लूट रहें हैं, उनके ही घर भरे खजाने!

मात-पिता के चरण छोड़कर, पत्थर को जो अपनाते हैं!
ऐसे लोग कहाँ इस जग में, कहाँ भला कुछ कर पाते हैं!

ये युक्ति है, या है बंधन मैं तो किंचित समझ ना पाया!
जिसके मन में विष होता है, उसी ने चन्दन तिलक लगाया............


इसी धर्म की आड़ वो लेकर, नारी अस्मत विक्रय करते!
लोगों को वो मूर्ख बनाकर, खुद को ईश्वर घोषित करते!
अब तो साधू संतो को भी, हुई जरुरत है दौलत की,
यही लोग तो इन लोगों को, अंधेपन से ग्रसित करते!


बुद्धिमत्ता "देव" छोड़के, स्वामी उनको बतलाते हैं!
ऐसे लोग कहाँ इस जग में, कहाँ भला कुछ कर पाते हैं!

ये मुक्ति है या उलझन, मैं तो किंचित समझ ना पाया!
जिसके मन में विष होता है, उसी ने चन्दन तिलक लगाया!"


"भक्ति, अंधापन नहीं है! भक्ति कर्तव्यों में भी शामिल है! तो आओ चिन्तन करें! - चेतन रामकिशन(देव)" 
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ प्रेम( ऑनर किलिंग)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"कैसे थाम सकोगे तुम अब, प्रेम की अविरल धारों को!
कैसे अलग करोगे तुम अब, चंदा और सितारों को!
रक्त की धारा के बहने से, प्रेम की गंगा कहाँ थमी है,
कैसे बुझा सकोगे तुम अब, प्रेम भरे अंगारों को!

क्यूँ तुम अपने बच्चों को, प्रेम शब्द का ज्ञान कराते!
रहा करो तुम प्रेम से बच्चों, क्यूँ इसका गुणगान कराते!

इसी ज्ञान को धारण करके, प्रेम के पथ पे जब वो जाते!
उनके रक्त के स्वामी हैं जो, वो ही उनका रुधिर बहाते!

रक्तमयी बूंदे कहती हैं, प्रेम की धारा नहीं रुकेगी!
खून की नदियाँ बह जायें पर, प्रेम की गंगा नहीं रुकेगी..................

क्यूँ तुम अपने बच्चों को, भेद रहित सदभाव सिखाते!
क्यूँ कहते को एक है मानव, क्यूँ इनको ये पाठ पढ़ाते!
क्यूँ कहते हो उंच-नीचे और भेदभाव तुम कभी ना करना,
क्यूँ कहते हो यही कार्य हैं, हमको मानव धर्म सिखाते!

क्यूँ तुम अपने बच्चों को, भेद रहित ये ज्ञान कराते!
रहा करो तुम प्रेम से बच्चों, क्यूँ इसका गुणगान कराते!

इसी सोच को धारण करके, प्रेम के पथ पे जब वो जाते!
उनके जीवन के पालक ही , उनकी आंख का नीर बहाते!

नीर की ये बूंदे कहती हैं, प्रेम की धारा नहीं रुकेगी!
खून की नदियाँ बह जायें पर, प्रेम की गंगा नहीं रुकेगी..................

यदि प्रेम से हिंसा है तो, प्रेम के ना उपदेश सुनाना!
बच्चों को हिंसा में रखना, और हिंसा का पाठ पढाना!
हो सकता है इसी लगन से, हिंसा की तुम हवा चला दो,
खुद रहना तुम इसी हवा में, और "देव" को यहीं सुलाना!

क्यूँ तुम अपने बच्चों को,प्रेम युक्त ये ज्ञान कराते!
रहा करो तुम प्रेम से बच्चों, क्यूँ इसका गुणगान कराते!

इसी वस्त्र को धारण करके, प्रेम के पथ पे जब वो जाते!
उनके जीवन के संवाहक, उनके तन का रुधिर बहाते!


रक्तमयी बूंदे कहती हैं, प्रेम की धारा नहीं रुकेगी!
खून की नदियाँ बह जायें पर, प्रेम की गंगा नहीं रुकेगी!"


"सम्मान के नाम पर हो रहीं, प्रेमी युगलों की हत्याएँ प्रेम को समाप्त करना तो दूर, प्रेम को प्रभावित भी नहीं कर सकती हैं! क्यूंकि, ये प्रेम हमारी संस्कृति में है और हम स्वयं अपने बच्चों को प्रेम सिखाते हैं! तो आइये प्रेम का सम्मान करें- चेतन रामकिशन (देव)"

♥ प्रेम( संवेदनात्मक एहसास )♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ प्रेम( संवेदनात्मक एहसास )♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"तुम जरुरत से भी, ज्यादा ख्याल रखते हो!
ऐसा लगता है मुझे, मुझसे प्यार करते हो!

मैंने कई बार तो वो, इस तरह भी देखा है,
खुद रहो धूप में, और मुझपे छांव करते हो!

तुम तो सहते हो, मेरा गुस्से को ख़ुशी की तरह,
मेरी नाराजगी से तुम तो, बड़े डरते हो!

मेरी राहों में ना अँधेरे के निशां हो कभी,
खुद जलन सह के भी, दीपक की तरह जलते हो!

मैंने देखी है "देव" तेरी, मोहब्बत की झलक,
मेरे आंसू भी अपनी आंख, में तुम भरते हो!"


"जब किसी से प्रेम होता है, तो समर्पण आता है! समर्पण की यही भावना प्रेम को संस्कृत करती है! अगर किसी को उपरोक्त भाव समर्पित करने का मन है तो आओ, शुद्ध प्रेम करें!- चेतन रामकिशन (देव)

♥ जीवन चक्र ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ जीवन चक्र ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" दीप कभी पुलकित होते हैं, कभी निराशा के पल आते!
कभी पथों में कंटक मिलते, कभी फूल पथ में खिल जाते!
कभी डगर जीवन की कोमल, कभी पठारों सी चोड़ाई,
कभी छवि विस्मृत होती है, कभी नए यौवन मिल जाते!

जीवन तो एक चक्र है देखो, इसको पूरा करना होगा!
आगे पीछे एक दिन सबको, धीरे धीरे मरना होगा!

किन्तु जब तक जीवित हो तुम, आशाओं के दीप जलाना!
मिल जाएगी मंजिल तुमको, सही दिशा में कदम बढ़ाना........

कभी समस्या पंख पसारे, कभी सफलता की किलकारी!
कभी किनारा मिलता है तो, कभी डूबती नाव हमारी!
किन्तु संघर्षों की युक्ति, कभी नहीं तुम धूमिल करना,
साहस होगा मन चिंतन में, खंडित किस्मत बने हमारी!

जीवन तो एक वक्र है देखो, इसको सीधा करना होगा!
आगे पीछे एक दिन सबको, धीरे धीरे मरना होगा!

किन्तु जब तक प्रकट हो तुम, उत्साहों के रंग सजाना!
मिल जाएगी मंजिल तुमको, सही दिशा में कदम बढ़ाना........

कभी चांदनी रंग बिखेरे, कभी अमावस की हों रातें!
कभी दुखों की संध्या हो तो, कभी हर्ष की हों प्रभातें!
किन्तु जाग्रति की शक्ति, कभी नहीं तुम धूमिल करना,
मेहनत होगी हाथों में तो, सूखे में होंगी बरसातें!

जीवन तो एक तर्क है देखो, उलझन को तो हरना होगा!
आगे पीछे एक दिन सबको, धीरे धीरे मरना होगा!

किन्तु जब तक जीवित हो तुम, "देव" नहीं तुम नीर बहाना!
मिल जाएगी मंजिल तुमको, सही दिशा में कदम बढ़ाना!"

"जीवन, एक चक्र है, जो विजय, पराजय, आशा, निराशा, सफलता, असफलता के बीच से गुजरता है! किन्तु यदि हम अपने मन में साहस, सकारात्मकता और आत्मविश्वास रखें तो ये चक्र सफलता के चारों और भी दीर्घ परिक्रमा काट सकता है! तो आइये बेहतर सोचें- चेतन रामकिशन (देव)"

♥♥हवस( दर्द की इन्तहा) ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥हवस( दर्द की इन्तहा) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"रक्त की बूंद से रच डाली है, उसके जीवन की संरचना!
ऐसा जीवन दिया है उसको, जैसे जीते जी हो मरना!
चीख घुली है हवा कणों में,और आंख की पलक में आंसू,
आज सभी मुख्प्रस्ठों पर जो, छपी हवस की निर्मम घटना!

अपने छनिक स्वार्थ की धुन में, मानवता को मार दिया है!
इन लोगों ने एक नारी की, इज्ज़त को यूँ तार किया है!

उसके जीवन का पथ दुष्कर, जीवन में उल्लास नहीं है!
सपने बुनना छोड़ चुकी वो, हर्षमयी आभास नहीं है!

इसी तरह से इस नारी को, ये जाने कब तक कुचलेंगे!
मानवता की छवि कलंकित, कब तक ये आंसू बिखरेंगे............

कानूनों का भय भी टूटा, न्याय दर्शिता दर्पण टूटा!
कोई सुबूतों में बच जाता, कोई गवाह के चुप से छूटा!
कोई नारी ऐसा सहकर, जान भी अपनी दे देती है,
कोई जीवन ऐसे जीती, कहीं दुखों का सागर फूटा!

अपने इस लाभार्थ की धुन में, मानवता को मार दिया है!
इन लोगों ने एक नारी की, इज्ज़त को यूँ तार किया है!

ढला ढला रहता है दिनकर, जीवन में प्रकाश नहीं है!
सपने बुनना छोड़ चुकी वो, हर्षमयी आभास नहीं है!

इसी तरह से इन पुष्पों को, ये जाने कब तक मसलेंगे!
मानवता की छवि कलंकित, कब तक ये आंसू बिखरेंगे............

मंचों से नेता देते हैं, नारी मुक्ति का संबोधन!
किन्तु पट के पीछे वो भी, इसी नार का करते शोषण!
"देव" तुम्हे अब जगना होगा, तभी चित्र में रंग सजेगा,
शत्रु पीछे हट जायेंगे, रण भेरी का सुन उधबोदन!


अपने छनिक स्वार्थ की धुन में, मानवता को मार दिया है!
इन लोगों ने एक नारी की, इज्ज़त को यूँ तार किया है!

मधु नहीं लेता अब मधुकर, पुष्पों में अधिवास नहीं है!
सपने बुनना छोड़ चुकी वो, हर्षमयी आभास नहीं है!

पाषाणों के ह्रदय जैसे, ये पत्थर कब तक पिघलेंगे!
मानवता की छवि कलंकित, कब तक ये आंसू बिखरेंगे!"


"जिस नारी के साथ ये घटना होती है, उसका जीवन पीड़ा का दर्पण हो जाता है! क्यूंकि इस पुरुष प्रधान समाज में, ये रक्तरंजित उत्पीड़न सहकर भी सर झुका के उसे ही चलना पड़ता है और इस कृत्य के निर्माता मस्तक ऊँचा करके घूमते हैं! - चेतन रामकिशन (देव)"
♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥खाली हाथ(बेरोजगारी) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"बड़ी ख़ुशी से पढने जाते, और आँखों में स्वप्न जगाते!
अपनी छोटी अंखियों से वो, पन्ना पन्ना पढ़ते जाते!
उनके मन में आशा होती, पढ़ लिखकर कुछ कर जाने की,
मंदिर मस्जिद जाकर देखो, शीश नवाते, शीश झुकाते!

किन्तु उनका सपना भी, हो जाता है पल में खंडित!
पढने वाले अज्ञानी हों, और अज्ञानी बनते पंडित!

युवा भटकते रोजगार को, ना खाने को दाना पानी!
बचपन के सपने टूटे हैं, झुलस रही है नयी जवानी!

नहीं मगर सत्ता को मतलब, भूख प्यास से नौजवान की!
युवा शक्ति को हरा रहें हैं , जीत कहाँ है हिंदुस्तान की....

कड़ी धूप में रोजगार की, मंशा अपने मन में भरके!
विजय की सारी आशाओं को, अपने मन में धारण करके!
किन्तु जब मांगी जाती हैं, उनसे रिश्वत की सौगातें,
आ जाते हैं दबे पांव घर, वो डर डरके, और मर मरके!

सरकारें तो करती हैं बस, अपनी महिमा को ही मंडित!
पढने वाले अज्ञानी हों, और अज्ञानी बनते पंडित!

युवा तरसते हैं बयार को, मिले ना उनको हवा सुहानी!
बचपन के सपने टूटे हैं, झुलस रही है नयी जवानी!

नहीं मगर सत्ता को मतलब, युवा शक्ति के इत्मिनान की!
युवा शक्ति को हरा रहें हैं , जीत कहाँ है हिंदुस्तान की.....

रिश्वत के बाजार में देखो, नहीं योग्यता जीवित होती!
सत्य वचन की हुई पराजय, मिथ्या की ही जय जय होती!
सरकारें कहती हैं लेकिन नहीं तंत्र है झूठा उनका,
जबकि सरकारों की नियत, स्वयं बहुत ही मैली होती!



"देव" यहाँ तो होनहार को, किया जा रहा है अब दण्डित!
पढने वाले अज्ञानी हों, और अज्ञानी बनते पंडित!

युवा तरसते हैं करार को, धुंधली धुंधली लगे कहानी!
बचपन के सपने टूटे हैं, झुलस रही है नयी जवानी!

नहीं मगर सत्ता को मतलब, युवा शक्ति के स्वाभिमान की!
युवा शक्ति को हरा रहें हैं , जीत कहाँ है हिंदुस्तान की!"


"रिश्वत के वर्चस्व, सरकारी और प्रशासनिक तंत्र की खराब नीतियों के चलते युवा हतौत्साहित है! उसका मूल कमजोर नहीं है, मगर उसे कमजोर बनाया जा रहा है! किन्तु ये भी सत्य है, की जहाँ युवा कमजोर होते हैं, वो देश भी कमजोर होता है!- चेतन रामकिशन(देव)"

♥ ♥♥प्रेम और पीड़ा ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥प्रेम और पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"पीड़ा कितनी घातक होती, कोई बिछुड़ के जाता है जब!
कोई खुदा और कोई ईश्वर, ख़ुशी नहीं दे पाता है तब!
नयन में अश्रु, पांव में कंटक, जीवन का पथ होता दुष्कर,
जिसका नाम ह्रदय पे लिखा, कहाँ भला मिट पाता है अब!

प्रेम की पीड़ा रक्त बूंद में,मानो ऐसे घुल जाती है!
गगन से लावा गिरता है, और धरती भी जल जाती है!

कष्टपूर्ण है विरह वेदना, शब्दों से उदधृत ना होगी!
कितने भी प्रयास करो तुम, छवि ना उसकी विस्मृत होगी......


प्रेम है पावन सत्य वचन है, पीड़ा भी विस्फोटक होती!
रात रात भर आंख जगे ये, भले ही सारी दुनिया सोती!
ये कहना आसान है बिल्कुल, भूल चलो तुम उन राहों को,
कैसे पर आधार गिराओ, जिन पर खड़ी ईमारत होती!

प्रेम की पीड़ा स्वांस तंत्र में, मानो ऐसे मिल जाती है!
पुष्प टूट कर गिर जाते हैं, कंटक माला खिल जाती है!

पीड़ा का सम्बन्ध है गहरा, जीते जी वो मृत ना होगी!
कितना भी प्रयास करो तुम, छवि ना उसकी विस्मृत होगी.....

प्रेम के रेशम धागे की जब, मोटी रेखा कट जाती है!
वो पल ऐसा होता है ये, जहाँ जिंदगी बंट जाती है!
पीड़ा की अनुभूति मन को, देती है उद्दीपन इतना,
दुःख की वर्षा बेमौसम हो, हर्ष की बदली छट जाती है!

प्रेम की पीड़ा"देव" नयन में,मानो ऐसे मिल जाती है!
पाषाणों के टुकड़े होते, पर्वत माला हिल जाती है!

प्रेम की पीड़ा विष होती है, कभी नहीं वो अमृत होगी!
कितने भी प्रयास करो तुम, छवि ना उसकी विस्मृत होगी!"

"प्रेम की पीड़ा घातक होती है! इससे व्यक्ति की मनोदशा पर भी प्रभाव पड़ता है! व्यक्ति के आत्मविश्वास में भी कमी आती है! तो आइये किसी का ह्रदय खंडित करने से पहले सोचें!-चेतन रामकिशन (देव)"

**देशी अंग्रेज( मैली राजनीती)***

*************देशी अंग्रेज( मैली राजनीती)*************
"उनके पांव में शूल चुभे हैं, और नैनों में लाली!
उनके जीवन की बगिया की, सूख गई हर डाली!
गर्मी की इस धूप में वो तो, बूंद बूंद को तरसे,
सत्ताधारी कहते हैं की, हर घर में खुशहाली!

नहीं जल रहे चूल्हे उनके, अन्न अन्न को तरसे!
उनकी आंख से बेमौसम ही, दुःख की वर्षा बरसे!

जिसने देश को लहू से सींचा, उसको ही छलते हैं!
आम जनों की लूट सम्पदा, झोली खुद भरते हैं!

आम जनों अब जाग चलो तुम, रण का बिगुल बजा दो!
खद्दर में अंग्रेज आ गए, इनको जरा भगा दो........................

उन अंग्रेजो के जैसे ही, आम जनों को तोड़ रहे हैं!
रोटी का मुद्दा विचलित कर, धर्म जात से जोड़ रहें हैं!
बस अपनी सत्ता के मद में, फूले नहीं समाते हैं ये,
आम आदमी भूख के कारन, स्वांस भी अपनी छोड़ रहें हैं!

आम जनों के घर अँधेरा, हो गए कितने अरसे!
उनकी आंख से बेमौसम ही, दुःख की वर्षा बरसे!

देश को जीवन देने वाले, भूख से यूँ मरते हैं!
आम जनों की लूट सम्पदा, झोली खुद भरते हैं!

आम जनों अब जाग चलो तुम, समयी चक्र घुमा दो!
खद्दर में अंग्रेज आ गए, इनको जरा भगा दो........................

आम जनों के गाढे धन को, अपना कहते हैं ये!
उसी देश को बेच रहें हैं, जिसमें रहते हैं ये!
कभी खेल छमता को बेचै, कभी करें घोटाले,
आम जनों की रक्त नदी में, खुलकर बहते हैं ये!


जिसने रचित किये संसाधन, उनपर चलते फरसे!
उनकी आंख से बेमौसम ही, दुःख की वर्षा बरसे!

जिसने महल बनाए सबके, वो दर दर फिरते हैं!
आम जनों की लूट सम्पदा, झोली खुद भरते हैं!

आम जनों अब जाग चलो तुम, "देव" का कहर मिटा दो!
खद्दर में अंग्रेज आ गए, इनको जरा भगा दो!"


"एक जुट होना होगा! लानी होगी क्रांति, तभी आम आदमी पनप सकेगा! आम आदमी सब कुछ करके भी धूल के एक कण की बराबर भी नहीं समझा जाता है!

मित्रों, स्वाथ्य सम्बन्धी विकारों के कारण कुछ दिन कलम थमा रहेगा! आप सभी का प्रेम और स्नेह बहुत अनमोल है! दुआ करना की, मेरा साहित्यिक जीवन का ये विराम, कहीं पूर्ण विराम न बन जाये! आप सभी का धन्यवाद!
 

♥♥पिता(रचनाधार) ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥पिता(रचनाधार) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"मेरी आँखों में आकर के, सपना नया सजाते हैं वो!
मेरे पथ के कंटक चुनकर, पुष्प लतायें बिछाते हैं वो!
संसाधन देते हैं मुझको, और जीवन जीने की उर्जा,
प्रेम सदा सदभाव का दर्पण, हमको सदा दिखाते हैं वो!

पिता हमारा पालन करते, जीवन का अवतारण करते!
दिशा हमे देते जीवन की, जीवन का निर्धारण करते!

पिता ना होते, हम न होते, ना रचना होती इस तन की!
वो धरती पे ईश्वर होते, बात सुनो तुम मेरे मन की......

पिता हमारे संवाहक हैं, वो जीवन का परिचायक हैं!
हमको हर्ष सदा देते हैं, पिता हमारे सुखदायक हैं!
जब भी हम अवसाद में घिरते, अपना हाथ रखेंगे सर पे,
हमको चलना वही सिखाते, वो जीवन के निर्वाहक हैं!

पिता हमारा लालन करते, इस जीवन का तारण करते!
दिशा हमे देते जीवन की, जीवन का निर्धारण करते!

पिता का कद इतना ऊँचा है, जैसे ऊँची माप गगन की!
वो धरती पे ईश्वर होते, बात सुनो तुम मेरे मन की......

पिता का जीवन दर्शन देखो, हर पल बहुत सुनहरा होता!
इतना हमसे प्रेम करें वो, जैसे सागर गहरा होता!
"देव" पिता की चरण धूल को, मस्तक जरा लगाकर देखो,
हममे रहता जोश अनोखा, उनका सर पे पहरा होता!

पिता हमारा पालन करते, जीवन का अवधारण करते!
दिशा हमे देते जीवन की, जीवन का निर्धारण करते!

पिता का मन इतना कोमल है, जैसे कोमलता रेशम की!
वो धरती पे ईश्वर होते, बात सुनो तुम मेरे मन की!"


"पिता, एक ऐसा व्यक्तित्व जो हमारे जीवन को सफलता के उच्च शिखर पर ले जाने के लिए ना सिर्फ अपने पसीने की अपितु, रक्त की बूंदों तक की नीलामी कर देता है! आप सभी के स्नेह से मिलने वाले शब्दों की उपज से आज मैंने ऐसे व्यक्तित्व "पिता" को ये रचना समर्पित की है!-चेतन रामकिशन (देव)"

♥♥मित्रता( श्रेष्ठ सम्बन्ध) ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥मित्रता( श्रेष्ठ सम्बन्ध) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"मेरे मित्र हैं इतने प्यारे, जैसे चंदा और सितारे!
कभी भंवर में फंसता हूँ तो, वो लाते हैं मुझे किनारे!
मित्र ना होते तो जीवन में, कोई उपलब्धि ना होती,
मित्रों के इस प्रेम में मैं तो, उड़ता हूँ अब पंख पसारे!

"उषा" उनके प्रेम में होती, और "निशा" भी प्रेम में आती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हारो , मित्र भावना यही सिखाती!

मित्रों के इस प्रेम ने मेरे, मन चिंतन में ज्ञान जगाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया.........

मेरे दुःख की रेखाओं का, मित्रों ने अवसान किया है!
नहीं थामने हैं पग मुझको, हर पल ये आह्वान किया है!
"ऋतू" प्रेम की हरियाली दे, और "सुधाकर" धवल चांदनी,
मिथ्या पथ से दूर हुआ मैं, सत्य का बस गुणगान किया है!

मित्र प्रेम की सुखद भावना, जीवन में संगीत सुनाती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हरो, मित्र भावना यही सिखाती!

मित्रों के स्नेह ने मेरे, मन चिंतन में सत्य वसाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया.........

मित्र-प्रेम की जल-धारा ने, मन से दूषित सोच मिटाई!
ऐसे नयन दिए हैं मुझको, अँधेरे में जोत जलाई!
"देव" तुम्हारे मित्रों का तो, ऋणी रहूँगा जीवन भर मैं,
मित्रों के इस प्रेम भाव ने, मुझे विजय की राह दिखाई!

मित्र प्रेम की करुण भावना, मुझे दया के भाव सिखाती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हरो, मित्र भावना यही सिखाती!

मित्रों के इस नम्र भाव ने, मेरा जीवन सरल बनाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया!"

"मेरे मित्र अमूल्य हैं, उज्जवल हैं और कीर्ति और यश के स्वामी हैं! आप सभी मित्रों ने मेरे जीवन के दर्शन को सत्य, प्रेम, सदभाव, ज्ञान और उत्साह से जोड़ा है! आपका शत शत अभिनन्दन- चेतन रामकिशन(देव)"

♥♥प्रेम वेदना की व्याकुलता ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥प्रेम वेदना की व्याकुलता ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" भूख प्यास के भाव नहीं हैं, जीवन में उत्साह नहीं अब!
उसकी छवि ही आँखों में है, कुछ पाने की चाह नहीं अब!
दुनिया उसकी पीड़ा को पर, नाटक की संज्ञा देती है,
कैसे किन्तु समझाए वो, वाणी में प्रवाह नहीं अब!

माँ उससे कहती है बेटा, उस लड़की को याद ना करना!
मुझसे ना देखा जाता है, ये तेरा पल पल का मरना!

क्या बोले वो अपनी माँ से, वो तो बस चुप चुप रहता है!
प्रेम की उस घातक पीड़ा का, आँखों से आंसू बहता है!

प्रेम में ह्रदय खंडना से तो , एक ज्वार भाटा आता है!
मानव जीवित होता है पर, जीते जी वो मर जाता है....

व्यर्थ नहीं होती वो चिंता, उसने विष का घूंट पिया है!
पीड़ा के चुभते शूलों से, उसने अपना घाव सिया है!
कोई पुरा पाषाण नहीं है, जो उसको अनुभूति ना हो,
प्रेम भाव की गति बढाकर, उसने उत्तम काम किया है!

माँ उससे से कहती है बेटा, उन सपनो से तू ना डरना!
मुझसे ना देखा जाता है, ये तेरा पल पल का मरना!

क्या बोले वो अपनी माँ से, वो विरहा का दुःख सहता है!
प्रेम की उस घातक पीड़ा का, आँखों से आंसू बहता है!

प्रेम की विरह भावना से तो, एक ज्वार भाटा आता है!
मानव जीवित होता है पर, जीते जी वो मर जाता है....

माँ की अश्रु-धार देखकर, वो भरसक प्रयास भी करता!
किन्तु प्रेम संगिनी का वो, मस्तक उसके मन में वसता!
उसके नैना लाल हुए हैं, और पलकों के नीचे घेरे,
विरहा की अग्नि में देखो, दीपक की भांति वो जलता!

माँ उससे कहती है बेटा, नैना गीली तू ना करना!
मुझसे ना देखा जाता है, ये तेरा पल पल का मरना!



"देव" क्या बोले अपनी माँ से, वो तो बस गुमसुम रहता है!
प्रेम की उस घातक पीड़ा का, आँखों से आंसू बहता है!

प्रेम की इसी वेदना से तो, एक ज्वार भाटा आता है!
मानव जीवित होता है पर, जीते जी वो मर जाता है!"

"प्रेम, में मिलने वाली पीड़ा बहुत कष्ट दायक होती है! व्यक्ति, चाहता है की वो इस कोहरे से बाहर निकले पर अथक प्रयासों के बाद भी वो नहीं निकल पाता! इस वेदना से उसकी कार्य कुशलता, आत्म विश्वास और उत्साह में भी कमी आती है, तो आइये किसी को ये पीड़ा देने से पहले हजार बार सोचें-चेतन रामकिशन(देव)"

♥♥♥♥प्रेम ♥♥♥♥

♥♥♥♥प्रेम ♥♥♥♥

"प्रेम का वर्गीकरण,
सुप्तिकरण कैसे करें,
प्रेम के उस भाव का,
हम हरण कैसे करें!

प्रेम अविरल धार है, मानव का ये श्रंगार है,
प्रेम तो उत्थान की रचना, का सूत्रधार है!

प्रेम के स्वरूप में,
एक रूप ऐसा भी धरा!
रक्त से मिलता नहीं,
जीवन की है वो उर्वरा!

किंचित नहीं है व्यर्थ वो, नव जीवनी आधार है!
आयु का वक्र भी नहीं, ना धर्म की दीवार है!

आवेश सा ज्वलित नहीं,
विषधर सा वो क्रोधित नहीं,
प्रकाश है प्रभात का,
वो मेघ सा गर्जित नहीं!

अनुबंध है ये भाव का, ये "देव" का उपहार है!
ये प्रेम है गौरव सदा, ये पीड़ा का उपचार है!"

"सबके लिए प्रेम के मायने अलग हैं! सबकी अपनी सोच, शुद्ध सोच के साथ प्रेम करें!- चेतन रामकिशन"देव"

♥♥विस्फोट ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥विस्फोट ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"तू एक रचनाधार बन,
तू शत्रु का संहार कर,
आकाश भी फट जायेगा,
तू जोर से प्रहार कर!

संतोष में रहकर तुझे, कुछ भी नहीं मिल पायेगा!
वंचित रहा है जन्म से , वंचित ही मर जायेगा....

तू युद्ध का अवतार बन,
इनके हरण अधिकार कर,
इतिहास फिर दोहराएगा,
कमजोरी का परिहार कर!

तेरे पथों में उम्र भर, प्रसून ना खिल पायेगा!
वंचित रहा है जन्म से, वंचित ही मर जायेगा....

तू मांग का उद्गार बन,
नेताओं से अभिसार कर,
"देव" सिंहासन हिले,
तू दीर्घ वो आकार कर!

शक्तियों के ज्ञान बिन, कंकर भी ना हिल पायेगा!
वंचित रहा है जन्म से, वंचित ही मर जायेगा!"


"इस देश में अगर वंचित वर्ग को अधिकार पाने हैं तो उन्हें जागना होगा, उन्हें अपनी एकता की शक्तियों का बोध करना होगा, ये सौ फीसदी सत्य है की वंचित कमजोर नहीं हैं, अभी चुप हैं, किन्तु उनकी चुप्पी टूटेगी और, क्रांति जरुर आएगी, तो आइये हम भी इन्हें, इनकी शक्तियों को बोध करने/ कराने में सहयोग दें!-चेतन रामकिशन "देव"

♥♥बेटी ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥बेटी ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"वो कोकिला का गान है, वो सत्य की पहचान है!
वो पुष्प है सुन्दर सरल, वो प्रीत का प्रमाण है!
वो रीत है स्नेह की, वो प्रेरणा उत्साह की,
वो रक्त भी प्रेषित करे, वो हर घड़ी बलिदान है!

नाम है बेटी मगर, वो त्याग की पर्याय है!
वो हर्ष की अवधारणा, संतोष का अध्याय है!"

वो उच्च है पुत्रों से भी, उसको सदा सम्मान दो!
ना धूल उसको तुम कहो, ना शूल का उपनाम दो.......

वो समर्पण भाव की, बहती हुई जलधार है!
नीरसता है उसके बिना, वो चित्र का श्रंगार है!
उसको नहीं है लालसा, के स्वर्ण के कलशे मिले,
स्नेह की भूखी है वो, अपनत्व की हकदार है!

नाम है बेटी मगर, कोमलता की अभिप्राय है!
वो हर्ष की अवधारणा, संतोष का अध्याय है!"

वो अंकुरित सा बीज है, उसको सदा उत्थान दो!
ना धूल उसको तुम कहो, ना शूल का उपनाम दो.......

उपलब्धि है इस जन्म की, अनुबंध है प्रकाश का!
वो शीतला चन्दन की है, वो नाम है अधिवास का!
है "देव" ये सौभाग्य ही, बेटी हमारे साथ है,
आशाओं की ज्योति है वो, वो नाम है विश्वास का!

नाम है बेटी मगर, वो त्याग की पर्याय है!
वो हर्ष की अवधारणा, संतोष का अध्याय है!

वो चेतना नव ज्ञान की, उसको सदा उत्थान दो!
ना धूल उसको तुम कहो, ना शूल का उपनाम दो!"

"बेटी, या यूँ कहूँ की अतुलनीय सम्बन्ध! वो कभी धन की लालसा नहीं रखती, हाँ मगर वो सामान अपनत्व चाहती है! वो, वही स्नेह चाहती है, जो बेटे को दिया जाता है! तो आओ बेटी को सम्मान दें!-चेतन रामकिशन(देव)"