Tuesday 14 June 2011

♥♥प्रेम वेदना की व्याकुलता ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥प्रेम वेदना की व्याकुलता ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" भूख प्यास के भाव नहीं हैं, जीवन में उत्साह नहीं अब!
उसकी छवि ही आँखों में है, कुछ पाने की चाह नहीं अब!
दुनिया उसकी पीड़ा को पर, नाटक की संज्ञा देती है,
कैसे किन्तु समझाए वो, वाणी में प्रवाह नहीं अब!

माँ उससे कहती है बेटा, उस लड़की को याद ना करना!
मुझसे ना देखा जाता है, ये तेरा पल पल का मरना!

क्या बोले वो अपनी माँ से, वो तो बस चुप चुप रहता है!
प्रेम की उस घातक पीड़ा का, आँखों से आंसू बहता है!

प्रेम में ह्रदय खंडना से तो , एक ज्वार भाटा आता है!
मानव जीवित होता है पर, जीते जी वो मर जाता है....

व्यर्थ नहीं होती वो चिंता, उसने विष का घूंट पिया है!
पीड़ा के चुभते शूलों से, उसने अपना घाव सिया है!
कोई पुरा पाषाण नहीं है, जो उसको अनुभूति ना हो,
प्रेम भाव की गति बढाकर, उसने उत्तम काम किया है!

माँ उससे से कहती है बेटा, उन सपनो से तू ना डरना!
मुझसे ना देखा जाता है, ये तेरा पल पल का मरना!

क्या बोले वो अपनी माँ से, वो विरहा का दुःख सहता है!
प्रेम की उस घातक पीड़ा का, आँखों से आंसू बहता है!

प्रेम की विरह भावना से तो, एक ज्वार भाटा आता है!
मानव जीवित होता है पर, जीते जी वो मर जाता है....

माँ की अश्रु-धार देखकर, वो भरसक प्रयास भी करता!
किन्तु प्रेम संगिनी का वो, मस्तक उसके मन में वसता!
उसके नैना लाल हुए हैं, और पलकों के नीचे घेरे,
विरहा की अग्नि में देखो, दीपक की भांति वो जलता!

माँ उससे कहती है बेटा, नैना गीली तू ना करना!
मुझसे ना देखा जाता है, ये तेरा पल पल का मरना!



"देव" क्या बोले अपनी माँ से, वो तो बस गुमसुम रहता है!
प्रेम की उस घातक पीड़ा का, आँखों से आंसू बहता है!

प्रेम की इसी वेदना से तो, एक ज्वार भाटा आता है!
मानव जीवित होता है पर, जीते जी वो मर जाता है!"

"प्रेम, में मिलने वाली पीड़ा बहुत कष्ट दायक होती है! व्यक्ति, चाहता है की वो इस कोहरे से बाहर निकले पर अथक प्रयासों के बाद भी वो नहीं निकल पाता! इस वेदना से उसकी कार्य कुशलता, आत्म विश्वास और उत्साह में भी कमी आती है, तो आइये किसी को ये पीड़ा देने से पहले हजार बार सोचें-चेतन रामकिशन(देव)"

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