Tuesday, 14 June 2011

**देशी अंग्रेज( मैली राजनीती)***

*************देशी अंग्रेज( मैली राजनीती)*************
"उनके पांव में शूल चुभे हैं, और नैनों में लाली!
उनके जीवन की बगिया की, सूख गई हर डाली!
गर्मी की इस धूप में वो तो, बूंद बूंद को तरसे,
सत्ताधारी कहते हैं की, हर घर में खुशहाली!

नहीं जल रहे चूल्हे उनके, अन्न अन्न को तरसे!
उनकी आंख से बेमौसम ही, दुःख की वर्षा बरसे!

जिसने देश को लहू से सींचा, उसको ही छलते हैं!
आम जनों की लूट सम्पदा, झोली खुद भरते हैं!

आम जनों अब जाग चलो तुम, रण का बिगुल बजा दो!
खद्दर में अंग्रेज आ गए, इनको जरा भगा दो........................

उन अंग्रेजो के जैसे ही, आम जनों को तोड़ रहे हैं!
रोटी का मुद्दा विचलित कर, धर्म जात से जोड़ रहें हैं!
बस अपनी सत्ता के मद में, फूले नहीं समाते हैं ये,
आम आदमी भूख के कारन, स्वांस भी अपनी छोड़ रहें हैं!

आम जनों के घर अँधेरा, हो गए कितने अरसे!
उनकी आंख से बेमौसम ही, दुःख की वर्षा बरसे!

देश को जीवन देने वाले, भूख से यूँ मरते हैं!
आम जनों की लूट सम्पदा, झोली खुद भरते हैं!

आम जनों अब जाग चलो तुम, समयी चक्र घुमा दो!
खद्दर में अंग्रेज आ गए, इनको जरा भगा दो........................

आम जनों के गाढे धन को, अपना कहते हैं ये!
उसी देश को बेच रहें हैं, जिसमें रहते हैं ये!
कभी खेल छमता को बेचै, कभी करें घोटाले,
आम जनों की रक्त नदी में, खुलकर बहते हैं ये!


जिसने रचित किये संसाधन, उनपर चलते फरसे!
उनकी आंख से बेमौसम ही, दुःख की वर्षा बरसे!

जिसने महल बनाए सबके, वो दर दर फिरते हैं!
आम जनों की लूट सम्पदा, झोली खुद भरते हैं!

आम जनों अब जाग चलो तुम, "देव" का कहर मिटा दो!
खद्दर में अंग्रेज आ गए, इनको जरा भगा दो!"


"एक जुट होना होगा! लानी होगी क्रांति, तभी आम आदमी पनप सकेगा! आम आदमी सब कुछ करके भी धूल के एक कण की बराबर भी नहीं समझा जाता है!

मित्रों, स्वाथ्य सम्बन्धी विकारों के कारण कुछ दिन कलम थमा रहेगा! आप सभी का प्रेम और स्नेह बहुत अनमोल है! दुआ करना की, मेरा साहित्यिक जीवन का ये विराम, कहीं पूर्ण विराम न बन जाये! आप सभी का धन्यवाद!
 

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