♥♥♥♥♥♥♥♥ ♥♥मित्रता( श्रेष्ठ सम्बन्ध) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"मेरे मित्र हैं इतने प्यारे, जैसे चंदा और सितारे!
कभी भंवर में फंसता हूँ तो, वो लाते हैं मुझे किनारे!
मित्र ना होते तो जीवन में, कोई उपलब्धि ना होती,
मित्रों के इस प्रेम में मैं तो, उड़ता हूँ अब पंख पसारे!
"उषा" उनके प्रेम में होती, और "निशा" भी प्रेम में आती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हारो , मित्र भावना यही सिखाती!
मित्रों के इस प्रेम ने मेरे, मन चिंतन में ज्ञान जगाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया.........
मेरे दुःख की रेखाओं का, मित्रों ने अवसान किया है!
नहीं थामने हैं पग मुझको, हर पल ये आह्वान किया है!
"ऋतू" प्रेम की हरियाली दे, और "सुधाकर" धवल चांदनी,
मिथ्या पथ से दूर हुआ मैं, सत्य का बस गुणगान किया है!
मित्र प्रेम की सुखद भावना, जीवन में संगीत सुनाती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हरो, मित्र भावना यही सिखाती!
मित्रों के स्नेह ने मेरे, मन चिंतन में सत्य वसाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया.........
मित्र-प्रेम की जल-धारा ने, मन से दूषित सोच मिटाई!
ऐसे नयन दिए हैं मुझको, अँधेरे में जोत जलाई!
"देव" तुम्हारे मित्रों का तो, ऋणी रहूँगा जीवन भर मैं,
मित्रों के इस प्रेम भाव ने, मुझे विजय की राह दिखाई!
मित्र प्रेम की करुण भावना, मुझे दया के भाव सिखाती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हरो, मित्र भावना यही सिखाती!
मित्रों के इस नम्र भाव ने, मेरा जीवन सरल बनाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया!"
"मेरे मित्र अमूल्य हैं, उज्जवल हैं और कीर्ति और यश के स्वामी हैं! आप सभी मित्रों ने मेरे जीवन के दर्शन को सत्य, प्रेम, सदभाव, ज्ञान और उत्साह से जोड़ा है! आपका शत शत अभिनन्दन- चेतन रामकिशन(देव)"
"मेरे मित्र हैं इतने प्यारे, जैसे चंदा और सितारे!
कभी भंवर में फंसता हूँ तो, वो लाते हैं मुझे किनारे!
मित्र ना होते तो जीवन में, कोई उपलब्धि ना होती,
मित्रों के इस प्रेम में मैं तो, उड़ता हूँ अब पंख पसारे!
"उषा" उनके प्रेम में होती, और "निशा" भी प्रेम में आती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हारो , मित्र भावना यही सिखाती!
मित्रों के इस प्रेम ने मेरे, मन चिंतन में ज्ञान जगाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया.........
मेरे दुःख की रेखाओं का, मित्रों ने अवसान किया है!
नहीं थामने हैं पग मुझको, हर पल ये आह्वान किया है!
"ऋतू" प्रेम की हरियाली दे, और "सुधाकर" धवल चांदनी,
मिथ्या पथ से दूर हुआ मैं, सत्य का बस गुणगान किया है!
मित्र प्रेम की सुखद भावना, जीवन में संगीत सुनाती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हरो, मित्र भावना यही सिखाती!
मित्रों के स्नेह ने मेरे, मन चिंतन में सत्य वसाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया.........
मित्र-प्रेम की जल-धारा ने, मन से दूषित सोच मिटाई!
ऐसे नयन दिए हैं मुझको, अँधेरे में जोत जलाई!
"देव" तुम्हारे मित्रों का तो, ऋणी रहूँगा जीवन भर मैं,
मित्रों के इस प्रेम भाव ने, मुझे विजय की राह दिखाई!
मित्र प्रेम की करुण भावना, मुझे दया के भाव सिखाती!
कभी नहीं तुम हिम्मत हरो, मित्र भावना यही सिखाती!
मित्रों के इस नम्र भाव ने, मेरा जीवन सरल बनाया!
मैं तो एक पाषाण शिला था, मित्रों ने इन्सान बनाया!"
"मेरे मित्र अमूल्य हैं, उज्जवल हैं और कीर्ति और यश के स्वामी हैं! आप सभी मित्रों ने मेरे जीवन के दर्शन को सत्य, प्रेम, सदभाव, ज्ञान और उत्साह से जोड़ा है! आपका शत शत अभिनन्दन- चेतन रामकिशन(देव)"
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