Monday 9 May 2011


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जुल्म का ज्वालामुखी  ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
" अम्बर टूट रहा है अब तो, धरती भी अब उबल रही है!
  मानवता भी विस्मृत है अब, जुल्म की सीमा पिघल रही है!
  इन लोगों की आँखों में है भाव शून्य, अब नहीं है आशा,
  आम आदमी, मजदूरों की जान भी, जिन्दा निकल रही है!

    अंग्रेजों के शासन जैसी, नीति फिर से चला रहे हैं!
    खद्दर धारी पहन के खद्दर, मुफलिस का घर जला रहे हैं!

ग्राम देवता सिसक रहा है, निकल रही अश्रु की धारा!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से भारत देश हमारा..................

मनो स्थिति वही कलुषित, अलग अलग हो भले मुखोटे!
सियासियों के कद ऊँचे हैं, अन्दर से पर दिल हैं छोटे!
ग्राम देवता की भूमि को, कब्जाती हैं ये सरकारें,
खुद रहते हैं महलों में पर, आम आदमी सड़क पर सोते!

  चन्दन जैसी शुद्ध हवा में, नफरत का रस मिला रहें हैं!
  खद्दर धारी  पहन के खद्दर, मुफलिस का घर जला रहे हैं!

आम आदमी तड़प रहा है, झूठा देश उदय का नारा!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से भारत देश हमारा..................

अपनी जेबें भरने को लूट रहे, जनता की दौलत!
राज घराने पनप रहें हैं, वंशवाद की हुयी हुकूमत!
"देव" मुल्क की हालत अब तो, नहीं है मुझसे देखी जाती,
गन्दी कीचड़ भी लज्जित हो, इतनी मैली हुई सियासत!

   अरबों लोगों की ताक़त को, चंद पुछल्ले भुला रहे हैं!
   खद्दर धारी पहन के खद्दर, मुफलिस का घर जला रहे हैं!

इतनी विस्मृत छवि हुयी है, गंगाजल भी लगता खारा!
खद्दर धारी बेच रहें हैं, फिर से भारत देश हमारा!"

" देश में सियासतदारों ने जनता को भेड़ बकरी समझ रखा है! जनता पर उत्पीड़न चरम सीमा पर है! तो आइये अपने वोट की ताक़त को पहचानते हुए, इस स्थिति को बदलने के प्रयास करें!-चेतन रामकिशन (देव)"