♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥फिरती नजरें..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जैसे आँखों से अश्कों की, बूंदें झर झर गिर जाती हैं!
उसी तरह से अब अपनों की, नजरें देखों फिर जाती हैं!
जब भी तुम मिलते हो मुझको, एक उजाला सा होता है,
बिना तुम्हारे इस जीवन में, गम की रातें घिर जाती हैं!
कानूनों के दुश्मन हैं जो, उनका चेहरा खिला खिला है,
और यहाँ इल्जाम की चोटें, मजलूमों के सिर आती हैं!
हाँ सच है के झूठ की रंगत, बहुत लुभाती हैं आँखों को,
लेकिन एक दिन आता है जब, झूठ की परतें चिर जाती हैं!
"देव" कभी नाकामी से तुम, हाथ पे हाथ नहीं रख लेना,
मेहनत की ताकत से देखो, यहाँ बहारें फिर आती हैं!"
..................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१३.०३.२०१३
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