Saturday, 9 March 2013

♥नुकीला दंत♥


♥♥♥♥नुकीला दंत♥♥♥♥
मानवता का अंत हो रहा,
पापी भी अब संत हो रहा,
जात-पात और धर्मवाद का,
बड़ा नुकीला दंत हो रहा!

जगह जगह बैठे उपदेशक,
लोगों को उपदेश सुनाते!
लोगों से धन ऐंठ ऐंठ कर,
अपने घर को महल बनाते!
बड़े जोर से कहते हैं ये,
ईश्वर की मूरत न कोई,
यही लोग फिर न जाने क्यूँ, 
अपनी मूरत को पुजवाते!

भोले लोगों के घर पतझड़,
इनके यहाँ बसंत हो रहा!
जात-पात और धर्मवाद का,
बड़ा नुकीला दंत हो रहा...

खुद को ईश्वर भक्त बताकर,
ईश्वर को विक्रय करते हैं!
यही लोग लोगों के मन में,
नए नए संशय करते हैं!
यही लोग अपने वचनों से,
"देव" सदा चर्चा में रहते,
ढोंग-दिखावा करके हरदम,
सब की किस्मत तय करते हैं!

नहीं कहा जाता शब्दों में,
रोष यहाँ अत्यंत हो रहा!
जात-पात और धर्मवाद का,
बड़ा नुकीला दंत हो रहा!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-१०.०३.२०१३

1 comment:

कालीपद "प्रसाद" said...

खुद को ईश्वर भक्त बताकर,
ईश्वर को विक्रय करते हैं!
यही लोग लोगों के मन में,
नए नए संशय करते हैं!
यही लोग अपने वचनों से,
"देव" सदा चर्चा में रहते,

ढोंग-दिखावा करके हरदम,
सब की किस्मत तय करते हैं!

बिलकुल सही कहा आपने
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