Friday, 2 May 2014

♥♥बारूद..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बारूद..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जिस्म बारूद बना इसको तुम सुलगने दो!
मेरे जज़्बात मेरे दिल में आग लगने दो!

मैं जो तड़पूँ तो मेरे मुंह को बंद कर लेना,
क्यों पड़ौसी को मेरी चीख से तुम जगने दो!

तुम तो कातिल हो तुम्हें दर्द से क्या मतलब है,
दिल को सीने से अलग करके तुम सुबकने दो!

सर्द मौसम में दवाओं का काम कर देंगे,
मेरे अश्कों को जरा तुम यहाँ भभकने दो!

मेरे हाथों में बनी थी जो प्यार की रेखा,
ग़म के तेज़ाब से तुम उसको जरा गलने दो!

बंदिशों में ही रहा जब तलक रह ज़िंदा,
बाद मरने के मेरी रूह को बहकने दो!

"देव" तुमसे न गिला और न शिकवा कोई,
बन्द आँखों से मुझे तय ये सफ़र करने दो!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०२.०५.२०१४


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