Tuesday 18 February 2014

♥♥♥मुफ़लिस की दाह..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥मुफ़लिस की दाह..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
टूटे पत्ते, नमी ओस की, और पेड़ की आह न देखी !
अपने सुख में लोग हैं अंधे, झूठ-मूठ की राह न देखी!
मुफ़लिस के घर के तिनकों में, आग भले ही लग जाये पर,
लोग शराबों में डूबे हैं, किसी ने उसकी दाह न देखी!

आखिर ये कैसा अपनापन, आखिर ये कैसा नाता है!
जान किसी की जाती है पर, अपना चेहरा मुस्काता है!

लावारिस की मौत मर गए, किसी ने उनकी राह न देखी!
टूटे पत्ते, नमी ओस की, और पेड़ की आह न देखी!

लोग आज के बड़े मतलबी, औरों पर इल्ज़ाम रखेंगे!
जब तक उनका मतलब होगा, वो लोगों से काम रखेंगे!
आज ज़माने की करतूतें "देव", देखकर दिल रोता है,
लोग किसी लुटती इज्जत का, फूटी कौड़ी दाम रखेंगे!

आज की इस दुनियादारी में, मानवता घायल होती है!
दर्द है इतना सारा मन में, आँख मेरी पल पल रोती है!

नेता, अफसर हुए मतलबी, मुफ़लिस की परवाह न देखी!
टूटे पत्ते, नमी ओस की, और पेड़ की आह न देखी !" 

...................चेतन रामकिशन "देव"……………
दिनांक-१९.०२.२०१४ 

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