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प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
प्रेम जहाँ पुष्पों की माला, हिंसा है त्रिशूल!
प्रेम नहीं तो मानव जीवन लगता है पाषाण,
प्रेम नहीं तो शब्द भी लगते हैं जहरीले वाण!
प्रेम नहीं तो माँ जननी की माटी लगती धूल!
प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
---"शुभ-दिन"---चेतन रामकिशन "देव"---
4 comments:
प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
बहुत सुंदर ...
प्रेम नहीं तो मानव जीवन लगता है पाषाण,
प्रेम नहीं तो शब्द भी लगते हैं जहरीले वाण!
....बहुत खूब!
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रजनीश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद! आपका स्नेह अनमोल है!
•♫♪"*♪♫•*¨*•.¸¸चेतन रामकिशन "देव"❤¸•♫♪"*♪♫•*•♫♪❤¸
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कैलाश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद! आपका स्नेह अनमोल है!
•♫♪"*♪♫•*¨*•.¸¸चेतन रामकिशन "देव"❤¸•♫♪"*♪♫•*•♫♪❤¸
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