Friday, 16 December 2011

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प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
प्रेम जहाँ पुष्पों की माला, हिंसा है त्रिशूल!

प्रेम नहीं तो मानव जीवन लगता है पाषाण,
प्रेम नहीं तो शब्द भी लगते हैं जहरीले वाण!

प्रेम नहीं तो माँ जननी की माटी लगती धूल!
प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!

---"शुभ-दिन"---चेतन रामकिशन "देव"---

4 comments:

रजनीश तिवारी said...

प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
बहुत सुंदर ...

Kailash Sharma said...

प्रेम नहीं तो मानव जीवन लगता है पाषाण,
प्रेम नहीं तो शब्द भी लगते हैं जहरीले वाण!

....बहुत खूब!

chetan ramkishan "dev" said...

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रजनीश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद! आपका स्नेह अनमोल है!
•♫♪"*♪♫•*¨*•.¸¸चेतन रामकिशन "देव"❤¸•♫♪"*♪♫•*•♫♪❤¸

chetan ramkishan "dev" said...

♪♫•*¨*•.¸¸❤¸¸❤¸¸.•*♪♫•*¨*•.¸¸❤¸¸.*•♫♪❤¸*•♫♪❤¸
कैलाश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद! आपका स्नेह अनमोल है!
•♫♪"*♪♫•*¨*•.¸¸चेतन रामकिशन "देव"❤¸•♫♪"*♪♫•*•♫♪❤¸