♥♥♥♥♥♥आंसुओं का समुन्दर..♥♥♥♥♥♥♥
नफरत ही सही तुमने मुझे कुछ तो दिया है!
इतनी बड़ी दुनिया में मुझे तन्हा किया है!
मैं तुमसे शिकायत भी यार कर नही सकता,
रब ने ही वसीयत में, मुझे दर्द दिया है!
तुम मुझको आंसुओं की, ये बूंदें न दिखाओ,
मैंने तो आंसुओं का समुन्दर भी पिया है!
जाने क्यूँ दर्द ज़ख्मों से बाहर निकल आया,
ज़ख्मों का तसल्ल्ली से रफू तक भी किया है!
तुम "देव" मुझे कोई उजाला न दिखाओ,
अब मेरा ही दिल मानो कोई जलता दिया है!"
........... (चेतन रामकिशन "देव") ..............
1 comment:
भाई देव इस जलते दिए में तेल डालना भूल गए ......?
बहुत मार्मिक ....पर दर्द की पुकार !
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