♥♥प्रेम का ज्योति कलश..♥♥♥
प्रेम का ज्योति कलश सखी तुम!
नम्र भाव और सरस सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम!
तुम फूलों की टहनी जैसी,
बड़ी ही नाजुक, बड़ी सरल हो!
तुम्ही हमारे भावों में हो,
तुम्हीं गीत और तुम्ही गज़ल हो!
तुम मेरे मन की दुल्हन हो,
तुम बिन कुछ भी नहीं सुहाता,
तुम्हीं वंदना हो जीवन की,
तुम ही उर्जा, तुम्ही विमल हो!
तुम ही मेरे दिल की धड़कन,
और जीवन का नफ़स सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम...
तुम मेरे मन की कविता हो,
शब्दकोष की चंचलता हो!
तुम पावन को ममता जैसी,
तुम गंगा सी निर्मलता हो!
"देव" तुम्हारी प्रीत ने मुझको,
हर पल गहरा सुकूं दिया है,
रेगिस्तानी धूप में भी तुम,
एहसासों की शीतलता हो!
तुम ही मेरा आसमान हो,
और हमारा फ़रश सखी तुम!
तुम संवेदनशील मनुज हो,
एक मनोहारी दरस सखी तुम!"
...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-१३.०५.२०१३
"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in/ पर पूर्व प्रकाशित"
2 comments:
sundar bhaav se sazi kavita .... saadar !
बहुत ही भावनापूर्ण रचना. पढकर अच्छा लगा.
-Abhijit (Reflections)
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