♥♥♥♥♥♥♥वेदना की आंच ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!
आपकी स्मृतियों का, नेह मन के घाव से है!
वेदना की आंच पे मैं तप के, कुंदन हो गया हूँ,
केंद्रबिंदु अब विषय का, बस इसी बदलाव से है!
कैसे मन से वेदना की धार को, अवमुक्त कर दूँ!
कैसे मैं संवेदना को, अपने मन से सुप्त कर दूँ!
एक क्षण की छूट से भी, बाढ़ का खतरा बना है,
कैसे दुख की बाढ़ से मैं, नव किरण को लुप्त कर दूँ!
मन की मखमल सी सतह का, ध्यान करता जा रहा हूँ!
इसीलिए मैं अपने दुख का, पान करता जा रहा हूँ!
वेदना को ये समर्पण, मानसिक सद्भाव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है…
वेग दुख का नापने को, युक्तियाँ कुछ जान ली हैं!
कुछ चनौती जिंदगी में, फिर से मैंने ठान ली हैं!
"देव" मैंने वेदना के कड़वे रस का पान करके,
देखकर दर्पण में खुद को, अपनी कमियां जान ली हैं!
वेदना के भ्रूण से मैं, सुख की रचना कर रहा हूँ!
लिखके मैं आवाज मन की, काव्य रचना कर रहा हूँ!
मेरा चिंतन भी प्रभावित, प्रेम के बिखराव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!"
.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१६.१०.२०१३
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!
आपकी स्मृतियों का, नेह मन के घाव से है!
वेदना की आंच पे मैं तप के, कुंदन हो गया हूँ,
केंद्रबिंदु अब विषय का, बस इसी बदलाव से है!
कैसे मन से वेदना की धार को, अवमुक्त कर दूँ!
कैसे मैं संवेदना को, अपने मन से सुप्त कर दूँ!
एक क्षण की छूट से भी, बाढ़ का खतरा बना है,
कैसे दुख की बाढ़ से मैं, नव किरण को लुप्त कर दूँ!
मन की मखमल सी सतह का, ध्यान करता जा रहा हूँ!
इसीलिए मैं अपने दुख का, पान करता जा रहा हूँ!
वेदना को ये समर्पण, मानसिक सद्भाव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है…
वेग दुख का नापने को, युक्तियाँ कुछ जान ली हैं!
कुछ चनौती जिंदगी में, फिर से मैंने ठान ली हैं!
"देव" मैंने वेदना के कड़वे रस का पान करके,
देखकर दर्पण में खुद को, अपनी कमियां जान ली हैं!
वेदना के भ्रूण से मैं, सुख की रचना कर रहा हूँ!
लिखके मैं आवाज मन की, काव्य रचना कर रहा हूँ!
मेरा चिंतन भी प्रभावित, प्रेम के बिखराव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!"
.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१६.१०.२०१३
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