♥♥♥गम की जडें..♥♥♥
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!
तन्हाई में साथ रहे जो,
कुछ ऐसे पल छांट रहा हूँ!
इस दुनिया ने भले ही मुझको,
कभी प्यार से नहीं पुकारा,
मगर मैं फिर भी इस दुनिया को,
प्यार के लम्हें बाँट रहा हूँ!
नहीं पता के सच से मुझको,
आखिर क्या हासिल होता है!
वो क्या समझे किसी के आंसू,
जिसका पत्थर दिल होता है!
और ये देखो, इस दुनिया के,
लोगों का है अजब नजरिया,
उसी को अच्छा कहते हैं सब,
जो देखो कातिल होता है!
कभी कभी भलमनसाहत पर,
मैं खुद ही डांट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ...
मुझको खुद से गिला नहीं है,
नजरें खुद से मिला रहा हूँ!
अपनी आँखों के अश्कों से,
बंजर में गुल खिला रहा हूँ!
"देव" यकीं है एक दिन मुझको,
पत्थर जैसे दिल पिघलेंगे,
इसीलिए मैं उम्मीदों के,
दीपक दिल में जला रहा हूँ!
बुरे वक़्त में अपने दिल को,
सूखी शबनम बाँट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!"
...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!
तन्हाई में साथ रहे जो,
कुछ ऐसे पल छांट रहा हूँ!
इस दुनिया ने भले ही मुझको,
कभी प्यार से नहीं पुकारा,
मगर मैं फिर भी इस दुनिया को,
प्यार के लम्हें बाँट रहा हूँ!
नहीं पता के सच से मुझको,
आखिर क्या हासिल होता है!
वो क्या समझे किसी के आंसू,
जिसका पत्थर दिल होता है!
और ये देखो, इस दुनिया के,
लोगों का है अजब नजरिया,
उसी को अच्छा कहते हैं सब,
जो देखो कातिल होता है!
कभी कभी भलमनसाहत पर,
मैं खुद ही डांट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ...
मुझको खुद से गिला नहीं है,
नजरें खुद से मिला रहा हूँ!
अपनी आँखों के अश्कों से,
बंजर में गुल खिला रहा हूँ!
"देव" यकीं है एक दिन मुझको,
पत्थर जैसे दिल पिघलेंगे,
इसीलिए मैं उम्मीदों के,
दीपक दिल में जला रहा हूँ!
बुरे वक़्त में अपने दिल को,
सूखी शबनम बाँट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!"
...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३
2 comments:
"देव" यकीं है एक दिन मुझको,
पत्थर जैसे दिल पिघलेंगे,
इसीलिए मैं उम्मीदों के,
दीपक दिल में जला रहा हूँ!
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति ...सादर
सुन्दर और ईमानदार रचना. पढकर खुशी हुयी. आभार.
-अभिजित (Reflections)
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