♥♥♥♥♥♥आलम...♥♥♥♥♥♥♥
मुल्क का आज कैसा आलम है।
देखो जिस ओर भी नया ग़म है।
आदमी होके आदमी में फरक,
आज इंसानियत बड़ी कम है।
मुफ़लिसी का मैं दर्द कैसे लिखूं,
पेट भूखा है और नही दम है।
रात भर जागके गुजारा करूँ,
तेरे जाने से आँख ये नम है।
मेरे अरमानों का गला घोंटा,
तू भी कातिल से अब कहाँ कम है।
है दवा महंगी कैसे होगी शिफ़ा,
साथ बीमारियों का मौसम है।
"देव" तकदीर है या दुश्वारी,
मुझको पानी नहीं, उन्हें रम है। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-२७.११.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
मुल्क का आज कैसा आलम है।
देखो जिस ओर भी नया ग़म है।
आदमी होके आदमी में फरक,
आज इंसानियत बड़ी कम है।
मुफ़लिसी का मैं दर्द कैसे लिखूं,
पेट भूखा है और नही दम है।
रात भर जागके गुजारा करूँ,
तेरे जाने से आँख ये नम है।
मेरे अरमानों का गला घोंटा,
तू भी कातिल से अब कहाँ कम है।
है दवा महंगी कैसे होगी शिफ़ा,
साथ बीमारियों का मौसम है।
"देव" तकदीर है या दुश्वारी,
मुझको पानी नहीं, उन्हें रम है। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-२७.११.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
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