♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ सपनों के कण... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बिखरे हैं सपनों के कण कण, जिन सपनों को रात बुना था।
चीख हुयी ज़ोरों की दिल से, मगर किसी ने नहीं सुना था।
देह तड़पती रही सड़क पर, अरमानों का कत्ल हो गया,
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था।
ये पत्थर का जहाँ है शायद, पत्थर की दुनिया दारी है।
कोई तड़पकर मर जाये पर, सबको अपनी जां प्यारी है।
बेरहमी से लोग किसी के, जज़्बातों की हत्या करते,
निर्दोषों के पांव में बेड़ी, कातिल की खातिरदारी है।
अनदेखा करते हैं उनको, दर्द वो जिनका कई गुना था।
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था …
वादा करके तोड़ दिये हैं और ऊपर से भ्रम करते हैं।
लोग यहाँ सदमा देने का, बड़ा ही लम्बा क्रम करते हैं।
"देव" यहाँ घड़ियाली आंसू, मगर रिक्त दिल अपनेपन से,
नहीं मिले २ वक़्त की रोटी, निर्धन कितना श्रम करते हैं।
सींचा जिसको, छाया न दी, बीज वो शायद जला भुना था।
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१५.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
बिखरे हैं सपनों के कण कण, जिन सपनों को रात बुना था।
चीख हुयी ज़ोरों की दिल से, मगर किसी ने नहीं सुना था।
देह तड़पती रही सड़क पर, अरमानों का कत्ल हो गया,
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था।
ये पत्थर का जहाँ है शायद, पत्थर की दुनिया दारी है।
कोई तड़पकर मर जाये पर, सबको अपनी जां प्यारी है।
बेरहमी से लोग किसी के, जज़्बातों की हत्या करते,
निर्दोषों के पांव में बेड़ी, कातिल की खातिरदारी है।
अनदेखा करते हैं उनको, दर्द वो जिनका कई गुना था।
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था …
वादा करके तोड़ दिये हैं और ऊपर से भ्रम करते हैं।
लोग यहाँ सदमा देने का, बड़ा ही लम्बा क्रम करते हैं।
"देव" यहाँ घड़ियाली आंसू, मगर रिक्त दिल अपनेपन से,
नहीं मिले २ वक़्त की रोटी, निर्धन कितना श्रम करते हैं।
सींचा जिसको, छाया न दी, बीज वो शायद जला भुना था।
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१५.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
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