♥♥♥नारी(स्नेही संवाहक )...♥♥♥
तुम उत्पत्ति हो जीवन की।
तुम सुगंध हो चंदन वन की।
तुम नारी की छवि को धारित,
सदा योग्य तुम अभिनन्दन की।
चन्द्र किरण की शीतलता तुम,
तुम भानु की ऊर्जा में हो,
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की।
सहनशीलता से पूरित हो,
मृदुभाषिता की वाहक हो।
तुम संबंधों की गरिमा हो,
तुम स्नेही संवाहक हो।
तुम नारी हो, दूध की गंगा,
शिशुओं को सिंचित करती हो,
तुम बिन घर में कर्म रिक्तता,
तुम कर्मठ हो, निर्वाहक हो।
तुम्ही प्राथमिक अध्यापक हो,
तुम लोरी सबके बचपन की।
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की।
तुम पुत्री हो, कली की भाँती,
तुम पत्नी हो, भावनिहित हो।
तुम माँ सबसे उच्च रूप में,
तुम ममता से पूर्ण निहित हो।
तुम बहनों के रूप में आकर,
भाई की सहयोगी बनतीं,
हर दृष्टि में तुम मधुरम हो,
इन नयनों को सदा सुहित हो।
तुम ही मन की प्रेम नायिका,
तुम ही वर्षा हो सावन की।
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की।
तुम अनुक्रम हो, परिवार का,
तुम वाहक हो संस्कार का।
तुम स्पर्श सुखद मलमल का,
तुम प्रेरक हो सदाचार का।
"देव" जगत में बिन नारी के,
पुरुषों का अस्तित्व न होता,
तुम वर्णित हो कविताओं में,
तुम सूचक हो अलंकार का।
तुम कोमल भावों की वाणी,
तुम क्षमता हो, सम्मोहन की।
तुम पर्याय खिले फूलों का,
तुम ही शोभा हो उपवन की। "
"
नारी-त्याग, समर्पण और विश्वास, प्रेम, सदाचार और सहयोग जैसे शब्दों का, यदि कोई पर्याय है तो वह नारी ही है, नारी है तो जीवन का अनुक्रम है, नारी है तो वसुंधरा की गोद भरी है। "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-३०.०६.२०१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित।
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