Monday, 28 December 2015

♥तपस्या...♥

♥♥♥♥♥तपस्या...♥♥♥♥♥♥♥
अनुभूति की हत्या कर दी। 
खंडित प्रेम तपस्या कर दी। 
जिसका पथ आसान किया था,
उसने जटिल समस्या कर दी। 

मेरे मन को भेद दिया है,
निर्ममता के प्रहारों से। 
मेरे भावों को काटा है,
विष में डूबी तलवारों से।  
मेरे नयनों को अश्रु का,
जीवन भर अभिशाप दे दिया,
मैंने दी थी कुशल कामना,
उसने मुझको श्राप दे दिया। 

जो सौगंध उम्र भर की थी,
उसने  क्षण में मिथ्या कर दी।  
जिसका पथ आसान किया था,
उसने जटिल समस्या कर दी...

सक्षम थे वो सुन सकते थे,
मुझ याचक के प्रस्तावों को। 
वो चाहते तो भर सकते थे,
छूकर के मेरे घावों को। 
पर न समझा मर्म को मेरे,
रौंद दिया है घायल मन को। 
निरपराधी होकर बोला,
दंड मेरे भावुक जीवन को। 

मेरे शत्रु के संग मिलकर,
विजय की स्वयं प्रतिज्ञा कर दी। 
जिसका पथ आसान किया था,
उसने जटिल समस्या कर दी। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२८.१२.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

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