Friday, 25 December 2015

♥खुद्दारी...♥

♥♥♥♥♥♥खुद्दारी...♥♥♥♥♥♥♥
अपना दिन तो बहुत कठिन था, 
अपनी रात बहुत भारी है। 
फिर भी शिकवा नहीं किसी से,
मुझमे इतनी खुद्दारी है। 
मेरे दिल के टुकड़े करके,
वो खुशियों के दीप जलायें,
नहीं पता क्यों इस दुनिया में,
मतलब की नातेदारी है। 

कड़ी धूप में जिसकी खातिर
ठंडक को मेरे साये थे। 
खुशबु से भरने को जिसके,
घर में गुलशन महकाये थे।  
जिसके पांवों में पायल के,
जोड़े बांधे बहुत प्यार से,
छुड़ा लिया वो हाथ भी उसने,
जिसमें कंगन पहनाये थे। 

बहुत कठिन है ये सब लिखना,
साँसों तक में दुश्वारी है।   
नहीं पता क्यों इस दुनिया में,
मतलब की नातेदारी है...

चलो करें वो जो उनका मन,
मिन्नत करके हार गया हूँ। 
जब पीड़ा ही किस्मत में है,
तो ये दुःख स्वीकार गया हूँ। 
"देव " हमारे दिल के भीतर,
एक लावा भर गया दर्द का,
बन बैठा हूँ मैं विस्फोटक,
मार के दिल को, पार गया हूँ। 

अपने ग़म के साथ मैं तन्हा,
चंहुओर दुनिया सारी है। 
नहीं पता क्यों इस दुनिया में,
मतलब की नातेदारी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२५.१२.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

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