Friday 10 July 2015

♥♥सूखी हथेली...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥सूखी हथेली...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रही हथेली सूखी सूखी, बारिश में फैलाई भी थी। 
न बख्शा ज़ख्मों को मरहम, चोट उन्हें दिखलाई भी थी। 
आज वो लेकर हुनर प्यार का, मुझसे दूर गया तो क्या है,
एक दिन मुझको रीत प्यार की, उसने ही सिखलाई भी थी। 

लेकिन जब जाना होता है, तो आना ये क्यों होता है। 
कोई बिछड़ कर जाता है तो, दिल आखिर ये क्यों रोता है। 
यदि कुचलना ही होता है, यौवन धारित हरे वृक्ष हो,
तो मानव फिर बीज नेह के, किसी के मन में क्यों बोता है। 

चलो जिंदगी गयी भी तो क्या, क़र्ज़ में यूँ तो पाई भी थी। 
रही हथेली सूखी सूखी, बारिश में फैलाई भी थी.... 

चलो दशा ये अपने मन की, और पीड़ा ये अंतर्मन की। 
न ख़्वाहिश हमको मलमल की, न हसरत मुझको सावन की। 
"देव" लिखा है जो कुदरत ने, शायद ये परिदृश्य वही है.
न इच्छा है पुनर्जन्म की, न चाहत है नवजीवन की। 

भूल गया सब गति शीलता, जो अधिगम से आई भी थी। 
रही हथेली सूखी सूखी, बारिश में फैलाई भी थी। "

.........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-११.०७.२०१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। 

2 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

आपकी इस पोस्ट को शनिवार, ११ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "पहला प्यार - ज़िन्दगी में कितना ख़ास" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर रचना !