Monday, 7 December 2015

♥♥♥♥फ़टी चादर..♥♥♥♥♥

दर्द दिन रात ही परोसा है। 
अब किसी पे नहीं भरोसा है। 

मैंने जिसके लिये दुआयें कीं,
देखो उसने ही मुझको कोसा है। 

आई दौलत तो मुझको भूल गया,
मैंने पाला है जिसको पोसा है। 

मुफ़लिसी मेरी और फ़टी चादर,
उसपे ठंडी हवा का बोसा है। 

"देव " आँगन तो मेरा छोड़ दिया,
पर वो उस दिन से बेघरो सा है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०७.१२.२०१५   
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "   

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