♥♥♥♥♥♥♥वजूद...♥♥♥♥♥♥♥♥
खुद को अपना वजूद दिखलाया!
दर्द से जीतना हमें आया!
पंख मेरे भले ही टूटे पर,
मैंने आकाश को न झुठलाया!
ख़्वाहिशें सब नहीं मिला करतीं,
ये सबक अपने दिल को सिखलाया!
रूह है अब भी चाँद सी सुन्दर,
ग़म ने हर रोज चाहें झुलसाया!
तेरे आने से आ गयी खुशबु,
जैसे बगिया में फूल खिल आया!
टूटे पत्तों को हाथ में लेकर,
दिल को पेड़ों का दर्द बतलाया !
"देव" चाहत में क्या कमी मेरी,
उनके हिस्से का भी ज़हर खाया! "
......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-१३.०७ २०१४
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