♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम.....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
धवल छवि, सौंदर्य अनुपम, केश मुग्ध करते हैं मन को।
तुम बिन मेरे साथ तिमिर था, तुमने श्वेत किया जीवन को।
मेरे भावों की सरिता तुम, मेरी कविता की परिचायक,
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को।
प्रेम ग्रन्थ के प्रसंगों को, अभिव्यक्ति का सार दिया है।
सखी मेरे जीवन को तुमने, मनचाहा उपहार दिया है।
मधुर सुरीला स्वर तुमने ही, दिया है पायल की छन छन को।
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को....
दीप प्रेम के हुये हैं पुलकित, उत्सव का अवसर लगता है।
तुम से ही पथ सरल हमारा, स्वर्ग सा तुमसे घर लगता है।
तुम पर्याय सुमन, फूलों की, उपवन का उल्लास है तुमसे,
बिन तेरे जीवन का एक क्षण, सोचने से भी डर लगता है।
तुमने ही सूनी डाली पर, हरा भरा श्रृंगार किया है।
तुमने शब्दों की ऊर्जा बन, भावों का विस्तार किया है।
तुम संग मन का क्रोध है कमतर, भूल रहा हूँ मैं अनबन को।
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को....
तुम अपने दर्शन देकर के, मेरा मन हर्षित करती हो।
बहुत बड़ा ह्रदय तुम्हारा, प्राण तलाक अर्पित करती हो।
"देव" तुम्हारी मृदुभषिता सुनकर, मन को अच्छा लगता,
नहीं किसी का बुरा सोचतीं, तुम दुनिया का हित करती हो।
तुमने मेरी अनुभूति का, हर क्षण ही सत्कार किया है।
बड़ा भाग्य है सखी हमारा, मुझको तुमने प्यार दिया है।
मिटा अँधेरा जो तुम आईं, तारे चमके अभिनन्दन को।
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को। "
........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१५.०७.२०१६
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