♥♥♥♥अश्रु जल...♥♥♥♥♥♥
ह्रदयाघात, प्रताड़ित मन है ,
अब तो शूलों पे जीवन है,
कष्ट आत्मा तक आ पहुंचा,
अश्रु जल का बहिर्गमन है।
मुख झुलसा है, पांव में छाले, धूप जलाती है भादों की।
मौन हैं मेरी आह को सुनकर, घनी रिक्तता संवादों की,
परिलक्षित हो ही जाता है, जब मन के मंतव्य बदलते,
सच के सम्मुख चमक बढ़ रही, मिथ्या के कुछ उत्पादों की।
आरोपित करके खुश होना,
अधिकांशत यही चलन है।
कष्ट आत्मा तक आ पहुंचा,
अश्रु जल का बहिर्गमन है ...
बिखर रहे सब स्वप्न नयन के, जटिल अवस्था है जीवन की।
शब्द रो रहे दशा देखकर, व्याकुलता इतनी लेखन की।
हर्षित हैं वो मुझे रुलाकर, विस्मृत करके संबंधों को,
नहीं टीस सुनता है कोई, मन के व्याकुल उद्बोधन की।
उमड़ रहा पीड़ा का सागर,
मानवता का बड़ा दमन है।
कष्ट आत्मा तक आ पहुंचा,
अश्रु जल का बहिर्गमन है। "
......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- २९.०७.२०१७
ह्रदयाघात, प्रताड़ित मन है ,
अब तो शूलों पे जीवन है,
कष्ट आत्मा तक आ पहुंचा,
अश्रु जल का बहिर्गमन है।
मुख झुलसा है, पांव में छाले, धूप जलाती है भादों की।
मौन हैं मेरी आह को सुनकर, घनी रिक्तता संवादों की,
परिलक्षित हो ही जाता है, जब मन के मंतव्य बदलते,
सच के सम्मुख चमक बढ़ रही, मिथ्या के कुछ उत्पादों की।
आरोपित करके खुश होना,
अधिकांशत यही चलन है।
कष्ट आत्मा तक आ पहुंचा,
अश्रु जल का बहिर्गमन है ...
बिखर रहे सब स्वप्न नयन के, जटिल अवस्था है जीवन की।
शब्द रो रहे दशा देखकर, व्याकुलता इतनी लेखन की।
हर्षित हैं वो मुझे रुलाकर, विस्मृत करके संबंधों को,
नहीं टीस सुनता है कोई, मन के व्याकुल उद्बोधन की।
उमड़ रहा पीड़ा का सागर,
मानवता का बड़ा दमन है।
कष्ट आत्मा तक आ पहुंचा,
अश्रु जल का बहिर्गमन है। "
......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक- २९.०७.२०१७