♥♥♥♥♥तुम संग...♥♥♥♥♥♥
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो।
नभ अम्बर के पृष्ठ भाग पर, सात वर्ण का विक्षेपन हो।
हरयाली का हरा आवरण, और फूलों का हो अभिनन्दन,
तुम बन जाओ छवि तुम्हारी, मेरा मुख तेरा दर्पन हो।
मिलन, भेंट और सखी निकटता, तुम ऊर्जा का संचारण हो।
प्रेम है तुममें सुनो धरा सा, तुम भावों का भण्डारण हो।
तुम्हीं मेरे रंग रूप की धवला, और तुम ही मेरा यौवन हो।
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो।
मिलन हुआ दो आत्माओं का, दोनों का मन एक हो गया।
द्वेष, क्षोभ न रहा किसी से, हृदय धवल और नेक हो गया।
मधुर तरंगे फूट रहीं हैं, सावन की इन मल्हारों में,
इस अमृत वर्षा में अपनी, निष्ठा का अभिषेक हो गया।
सखी मिलन के अनुपम क्षण हैं, देखो सार नहीं कम करना।
है हमपे दायित्व प्रेम का, उसका भार नहीं काम करना।
तुम सौंदर्य मेरी कविता का, और तुम मेरा सम्बोधन हो।
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो।
अभिलाषा, मन की जिज्ञासा, भाषा और विश्वास लिखा है।
सखी तुम्ही को मैंने धरती और अपना आकाश लिखा है।
तुम्हीं "देव " की श्रद्धा में हो, और तुम्हीं जगमग ज्योति में,
तुम्हें तिमिर को हरने वाला, चंदा का प्रकाश लिखा है।
नहीं रिक्त हो कोष प्रेम का, सबसे ये अनुरोध करेंगे।
नेह के पथ पर चलने वाले, न हिंसा अवरोध करेंगे।
तुम ही मेरी दृढ़ता में हो, और तुम मेरा संवेदन हो।
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो। "
"
प्रेम, एक ऐसा शब्द, जो विभिन्न सार्थक अर्थों में, हमारे और अपनों में मध्य प्राण तत्वों की तरह प्रवाहित होता रहता है, वह कभी प्रेयसी, कभी परिजनों, कभी सखा किसी भी रूप में अलंकृत होता है, तो आइये प्रेम करें।
चेतन रामकिशन 'देव '
दिनांक- ३०.०७.२०१८
(सर्वाधिक सुरक्षित, मेरे द्वारा लिखित ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो।
नभ अम्बर के पृष्ठ भाग पर, सात वर्ण का विक्षेपन हो।
हरयाली का हरा आवरण, और फूलों का हो अभिनन्दन,
तुम बन जाओ छवि तुम्हारी, मेरा मुख तेरा दर्पन हो।
मिलन, भेंट और सखी निकटता, तुम ऊर्जा का संचारण हो।
प्रेम है तुममें सुनो धरा सा, तुम भावों का भण्डारण हो।
तुम्हीं मेरे रंग रूप की धवला, और तुम ही मेरा यौवन हो।
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो।
मिलन हुआ दो आत्माओं का, दोनों का मन एक हो गया।
द्वेष, क्षोभ न रहा किसी से, हृदय धवल और नेक हो गया।
मधुर तरंगे फूट रहीं हैं, सावन की इन मल्हारों में,
इस अमृत वर्षा में अपनी, निष्ठा का अभिषेक हो गया।
सखी मिलन के अनुपम क्षण हैं, देखो सार नहीं कम करना।
है हमपे दायित्व प्रेम का, उसका भार नहीं काम करना।
तुम सौंदर्य मेरी कविता का, और तुम मेरा सम्बोधन हो।
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो।
अभिलाषा, मन की जिज्ञासा, भाषा और विश्वास लिखा है।
सखी तुम्ही को मैंने धरती और अपना आकाश लिखा है।
तुम्हीं "देव " की श्रद्धा में हो, और तुम्हीं जगमग ज्योति में,
तुम्हें तिमिर को हरने वाला, चंदा का प्रकाश लिखा है।
नहीं रिक्त हो कोष प्रेम का, सबसे ये अनुरोध करेंगे।
नेह के पथ पर चलने वाले, न हिंसा अवरोध करेंगे।
तुम ही मेरी दृढ़ता में हो, और तुम मेरा संवेदन हो।
सावन की वर्षा में तुम संग, शीतल बूंदों का लेपन हो। "
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प्रेम, एक ऐसा शब्द, जो विभिन्न सार्थक अर्थों में, हमारे और अपनों में मध्य प्राण तत्वों की तरह प्रवाहित होता रहता है, वह कभी प्रेयसी, कभी परिजनों, कभी सखा किसी भी रूप में अलंकृत होता है, तो आइये प्रेम करें।
चेतन रामकिशन 'देव '
दिनांक- ३०.०७.२०१८
(सर्वाधिक सुरक्षित, मेरे द्वारा लिखित ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )