♥♥♥♥♥प्रतीक्षा( गहरी व्याकुलता...) ♥♥♥♥♥♥
प्रतीक्षा, गहरी व्याकुलता, रिक्त धैर्य का कोष हुआ है।
बिना भेंट के सखी हमारे मन में गहरा रोष हुआ है।
मुझको दर्शन की अभिलाषा थी, तुमसे साक्षात रूप में,
छवि तुम्हारी देख देख कर, कतिपय न संतोष हुआ है।
हो जाते हैं धवल वो क्षण जब, सखी परस्पर हम मिलते हैं।
जीवन पथ पर रंग बिरंगे, फूलों के उपवन खिलते हैं।
वचन बांधकर भी न आना, बोलो किसका दोष हुआ है।
प्रतीक्षा, गहरी व्याकुलता, रिक्त धैर्य का कोष हुआ है....
सर्वविदित है प्रेम में देखो, मिलन के अवसर कम होते हैं।
क्यूंकि घर के हर क्षण पहरे, कहाँ दुर्ग से कम होते हैं।
"देव " कहो अवसर खोने से, कोमल मन को क्यों न दुःख हो,
एक बार जो चले गए क्षण, पुन कहाँ उदगम होते हैं।
सखी सुनो मैं रुष्ट हूँ तुमने, क्यूंकि असंतोष हुआ है।
प्रतीक्षा, गहरी व्याकुलता, रिक्त धैर्य का कोष हुआ है। "
चेतन रामकिशन 'देव '
दिनांक- ०३.११.२०१८
(सर्वाधिक सुरक्षित, मेरे द्वारा लिखित ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )