Sunday, 19 May 2019

♥पंछी चुप हैं... ♥

♥♥♥पंछी चुप हैं... ♥♥♥
पंछी चुप हैं, नदी किनारे सूने है।
तुझ बिन अम्बर, चाँद सितारे सूने हैं।

तू बिछड़ा तो मेहंदी भी मुंह मोड़ गई,
ये मलमल से हाथ, हमारे सूने हैं।

दौर है अब तो, मुंह की बोली से लिखना,
कलम, निशां  स्याही के सारे सूने  हैं।

माँ थी तो रौशन थी, मेरी अमावस तक,
माँ के बिन तो सब उजियारे सूने हैं।

"देव " तपिश आँखों में और गहरी लाली,
उल्फ़त गुम है और  गलियारे सूने हैं। "

चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-१९.०५.२०१९

(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in पर पूर्व प्रकाशित)

Sunday, 5 May 2019

♥♥♥थोड़ी सी आग... ♥♥♥

♥♥♥थोड़ी सी आग... ♥♥♥
कुछ अनबुझे चराग हैं, थोड़ी सी आग है।
साँसों में भारीपन है, आँखों में जाग है।

बाहर से पोत लेते हैं, बेशक़ सफेदी लोग,
दिल पे, ज़मीर, रूह पे, काजल का दाग है।

पहले तो जात पूछी, फिर मारा गया उसे,
इंसानियत का आज फिर उजड़ा सुहाग है।

अम्बर सुलग रहा है, नदी स्याह पड़ रही,
चिमनी से उठता धुआं, रसायन का झाग है।

सच्चाई थम रही है 'देव', लब सिले गए,
जिस सिम्त भी देखो, वहीं झूठों का राग है। "

चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-०६.०५.२०१९ 

Saturday, 4 May 2019

♥♥....खेत पर ♥♥

♥♥♥....खेत पर ♥♥♥
जल गए एक ओर मेरे, पांव तपती रेत पर,
और वहां कृषक जुटा है, धूप  में भी खेत पर,

ग्राम के हर देवता को, कष्ट है, संघर्ष है,
हाँ मगर के पेट सबके, भरने का भी हर्ष है।
जेठ की तपती दुपहरी, शीत हो या पूस की,
झोपड़ी सा घर है उसका, और बिस्तर फूस की।

देह तो झुलसी तपन से, मन नहीं अश्वेत पर,
और वहां कृषक जुटा है, धूप में भी खेत पर,

देश में, सूबे में बेशक, कोई भी  सरकार हो।
हाथ खाली और वंचित का, उसे सरोकार हो।
"देव" वासी को महज, समझा न जाये सिर्फ मत,
सबके हित की योजना का, एक ही आधार हो।

मौन है पर, रुष्ट है वो, जान लो संकेत भर।
और वहां कृषक जुटा है, धूप  में भी खेत पर। "

चेतन रामकिशन "देव "
दिनांक-०४.०५.२०१९ 
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.in पर पूर्व प्रकाशित)