Friday, 12 June 2020

♥♥इज़हार...♥♥

♥♥इज़हार...♥♥
गुनगुनाते रहे हम तुझे रात भर,
सामने से मगर कुछ भी कह न सके।
खिड़कियां खोलकर के निहारा तुझे,
तुझको देखे बिना हम तो रह न सके।

नाम कागज पे लिखकर संजोया तेरा
आरज़ू तेरी दिल में दबाये रखी।
कोई देखे तुझे और सवालात हों,
तेरी तस्वीर सबसे छुपाये रखी।
तेरे कदमों के नक़्शे निशां पे चला,
धूप में छांव में, और दिन रात में,
मन की हर एक तपन का शमन है तु ही,
तु नमी,ओस और तु ही बरसात में।

तुझसे संवाद में भी हुआ मौन मैं,
शब्द ठहरे के, धारा में बह न सके।
गुनगुनाते रहे हम तुझे रात भर,
सामने से मगर कुछ भी कह न सके....

मेरा संकोच इज़हार करने न दे,
होगा बेहतर तू ही, मेरा मन जान ले।
तुझको अपना समझते जमाना हुआ,
तू भी अपना मुझे, अब सखी मान ले।
"देव " ख्वाबों की नौका चलेगी तभी,
जो तू पतवार बनकर मेरे संग हो।
तू दिवाली के रौशन दिए की तरह,
तुझसे होली का झिलमिल सखी रंग हो।

प्रेम के पथ पे मैं नव पथिक की तरह,
पांव विरह के काँटों को सह न सके।
गुनगुनाते रहे हम तुझे रात भर,
सामने से मगर कुछ भी कह न सके। "

चेतन रामकिशन 'देव'
दिनांक-12.06.2020
 
(मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )