♥♥कुछ पहर...♥♥
अब चलो कुछ पहर साथ मेरे सुनो,
तुमसे कहना है कुछ, जो नहीं कह सका।
बिन तुम्हें देखे मेरी सुबह न खिली,
न दुपहरी हंसी, रात भी गुम रही।
काम में न, पढ़ाई में दिल ये लगा ,
हर तरफ मेरी आँखों में बस तुम रही।
प्यार की बेकरारी का ऐसा सितम,
बिन तुम्हारे है लफ़्ज़ों में खामोशपन ,
दूरियां कब मिटेंगी नहीं जानता,
कब जुड़ेंगी कड़ी, कब के होगा मिलन।
कब नदी दूर अपने किनारों से है,
पेड़ छाया के बिन अपनी कब रह सका।
अब चलो कुछ पहर साथ मेरे सुनो,
तुमसे कहना है कुछ, जो नहीं कह सका......
रंग फूलों में, तितली में तुमसे ही हैं,
रंग मेरी ख़ुशी के भी तुमसे खिलें।
खिल उठेंगे के आकाश में सात रंग,
जिस लम्हें, जिस घडी में, के हम तुम मिलें।
'देव' तुमसे ही गीतों के स्वर जुड़ गए,
तुमसे ही मेरी कविता का, उन्वान है।
रूपये पैसे तो बस बढ़े हैसियत ,
प्यार के धन से इंसान धनवान है।
रास्ता तेरे बिन सूना सा सूना है ,
इतना सन्नाटा है के, नहीं सह सका।
अब चलो कुछ पहर साथ मेरे सुनो,
तुमसे कहना है कुछ, जो नहीं कह सका। "
चेतन रामकिशन " देव"
दिनांक - २६.०६.२०२४
( सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे chetankavi.blogspot.in ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित )