Sunday 31 July 2011

♥♥बेटी की विदाई ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेटी की  विदाई ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!
 विदा जब हो रही बेटी, तो ख़ामोशी पसर आई!
 समूचे द्रश्य नयनों के पटल पे, आ गए झट से,
कभी जिद करती थी बेटी, कभी रोई थी, मुस्काई!

जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
खड़ा कुछ दूर कोने में, उसी का भाई रोता है!

कलाई देखता अपनी, जहाँ राखी थी बंधवाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....

विदाई के समय बेटी का भी, ये हाल होता है!
जो पल थे साथ में काटे, उन्ही का ख्याल होता है!
माँ उसके सर पे रखकर हाथ ये समझाती है उसको,
हर एक बेटी का दूजा घर, वही ससुराल होता है!

जहाँ बेटी विदा होती, विरह का काल होता है!
धरा भी घूमना रोके ,ये नभ भी लाल होता है!

नरम हाथों से माता के, कभी चोटी थी बंधवाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई.....

सभी आशीष दे बेटी को, फिर डोली बिठाते हैं!
निभाना सात वचनों को, यही उसको सिखाते हैं!
किसी सम्बन्ध में बेटी कभी तू भेद ना करना,
सहज व्यवहार रखने की, उसे बातें बताते हैं!

जहाँ बेटी विदा होती, वहां ऐसा ही होता है!
नया एक जन्म होता है, नया संसार होता है!

हंसाने, बोलने वाली सभी सखियाँ हैं मुरझाई!
पिता की आंख में आंसू, है माँ की आंख भर आई!"

"जब बेटी की विदाई होती है, तो बड़ी पीड़ा होती है! मंडप में अश्रु बहते हैं और चरों और ख़ामोशी ! किन्तु विवाह के दायित्व का निर्वहन करना बेटी का दायित्व भी होता है! इसी विदाई के पलों को जोड़ने का प्रयास किया है!-चेतन रामकिशन "देव"



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