Friday, 12 August 2011

**राखी-तब बंधवाना डोर----**

*************राखी-तब बंधवाना डोर----**************
        भाई बहिन तक सिमट न पाए, रक्षा का त्यौहार!
        प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार!
        अपनी बहन को बहन कहो तुम, और पे अत्याचार,
        ऐसे में ये बंधन झूठा, जब हों दुरित विचार!

        खून के रिश्तों से ही बनते, यदि बहिन या भाई!
        व्यर्थ है देनी मानवता की, मिथ्या भरी दुहाई!

        डोर तभी बंधवाना तुम जब, मन का करो निखार!
        प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार......

        सगी बहिन को देते हो तुम, रुपयों का उपहार!
        वहीँ किसी अबला पे करते, हिंसा की बोछार!
        कहाँ चला जाता है जब वो, नार का रक्षा बंधन,
        क्यूँ उसको पाषाण समझ कर, करते हो प्रहार!

       रक्षा बंधन हमे सिखाता, नारी का सम्मान!
       रक्षा बंधन हमे सिखाता, समरसता का ज्ञान!

       डोर तभी बंधवाना तुम जब, बदल सको व्यवहार!
       प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार......
     
       रक्षा बंधन पर बांधो तुम, राष्ट्र एकता डोर!
       मानव को मानव से जोड़ो, मिल जायें दो छोर!
       शत्रु का अब अंत करो तुम, "देव" जुटाओ जोश,
       देश बचाना चाहते हो तो, भरो भुजा में जोर!

       रक्षा बंधन पर देना है, राष्ट्र को जीवनदान!
       एक सूत्र में बंध जाओ तुम, राम हो या रहमान!

       डोर तभी बंधवाना तुम जब, सोच में करो सुधार!
       प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार!"


"आज रक्षा बंधन के पर्व पर, हमे राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बंधना है! मन से गंदे विचारों से मुक्ति देनी है! एक दूसरे को मानव से मानव को जोड़ने का संकल्प लेना है, तभी सही मायने में ये एक सार्थक रक्षा बंधन होगा, अन्यथा सिर्फ और सिर्फ एक रस्म!- चेतन रामकिशन "देव"
       




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