Monday, 19 December 2011

♥ग्राम देवता की पीड़ा ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥ग्राम देवता की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार!
खाद,बीज का दाम बढ़ाए, देश की हर सरकार!
सबका पोषण करने वाला, खुद रहता है भूखा,
ग्राम देवता की आँखों से, बहे अश्क की धार!

शरद ऋतू की सर्दी हो या मई- जून की ज्वाला!
कभी ना थककर घर में बैठे, खेतों का रखवाला!

फसलों की कीमत भी देखो, तय करती सरकार!
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार.....

ग्राम देवता पर होते हैं, देश में अत्याचार!
ग्राम देवता की भूमि को, लूट रही सरकार!
ग्राम देवता की पीड़ा का उड़ता है उपहास,
ग्राम देवता पर पड़ती हैं, लाठी की बौछार!

ग्राम देवता हमको देता पोषण का सामान!
सरकारें करती हैं उसका केवल ये अपमान!

ग्राम देवता पर होता है निस दिन ही प्रहार!
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार......

सरकारों अब करना छोड़ो कृषक का अपमान!
एक दिन इनकी शक्ति तुमको कर देगी वीरान!
इनकी ही मेहनत भरती है देश के कोषागार,
बिन कृषक के बिक जाएगा पल में हिंदुस्तान! 

ग्राम देवता के बिन सूनी इस भारत की शान!
कृषक से ही होती जग में भारत की पहचान! 

मरते दम तक उतर सके न, कृषक का उपकार!
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार!"

" जीवन के लिए मिलने वाली उर्जा हेतु, उपयोग में लाये जाने
खाद्यान का निर्माता कृषक( ग्राम-देवता) इस देश में बेहद अपेक्षित जीवन जीने को विवश है!  देश के राजकोष में सबसे ज्यादा धन कृषि से आता है किन्तु ये सरकारें उस धन का चोथाई हिस्सा तक कृषि और कृषक के हित में नहीं लगातीं! वास्तव में ग्राम देवता सिसक रहा है!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--१९.१२.२०११



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