♥♥♥♥♥♥♥♥♥चिंतन को सुप्त न करना...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गति कलम की मंद न करना, तुम चिंतन को सुप्त न करना!
अपने मन की अभिव्यक्ति को, अपने मन में लुप्त न करना!
इस दुनिया के लोग तुम्हें जो, संबोधन दें भ्रष्ट पुरुष का,
अपने जीवन की शैली को, तुम लालच से युक्त न करना!
अपने जीवन में मर्यादा, नैतिकता, अपनापन रखना,
अहंकार के वस्त्र पहनकर, इन सबको तुम मुक्त न करना!
चमक झूठ में होती लेकिन, इक दिन चमक उतरती उसकी,
इसीलिए तुम सच्चाई को, अंधकार में गुप्त न करना!"
........"शुभ-प्रभात"..........चेतन रामकिशन "देव".........
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