Saturday, 13 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हे मानव...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मर्यादा का परदा मन से, तार-तार जब हो जाता है!
और नैतिकता की नीति का, संस्कार जब खो जाता है!
संबंधों के अपनेपन में, बढ़ जाती है जब कड़वाहट,
और मनुज के ह्रदय का जब, शुद्ध आचरण सो जाता है!

ऐसी दुरित दशा में देखो, सामाजिकता भी रोती है!
नहीं पता मानव की बुद्धि, क्यूँ मन से चेतन खोती है!
क्यूँ लालच के हाथों मानव, मानव का ही रक्त बहाता,
जाने क्यूँ उसकी अनुभूति, चिर निद्रा में सो जाती है!

जागरूक होकर के इसका, चिंतन तो करना ही होगा!
हे मानव! तुझे ह्रदय में अपने, प्रेम भाव भरना ही होगा!"

.................चेतन रामकिशन "देव".........................







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