Saturday, 27 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल के लफ्ज़.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं अपने दिल के लफ्जों की तहरीर लिख रहा हूँ!
ग़ालिब कभी मुंशी तो कभी मीर लिख रहा हूँ!

मैं एक मुसाफिर हूँ, मोहब्बत के सफ़र का,
राँझा कभी मजनूं तो कभी हीर लिख रहा हूँ!

न झूठ की रंगत न कोई सोच पे पहरा,
मैं मुल्क के हालात की तस्वीर लिख रहा हूँ!

देकर के नेक इन्सां को मैं दिल से सलामी, 
नेताओं का बिकता हुआ ज़मीर लिख रहा हूँ!

वो लोग देखो "देव" को भुलाने लगे हैं,
मैं जिनके लिए प्यार की जागीर लिख रहा हूँ!"

............(चेतन रामकिशन "देव")..............

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