Wednesday 31 October 2012


♥♥♥पुत्री( एक फुलवारी)♥♥♥
पुत्री को अभिशाप न समझो!
उसके जन्म को पाप न समझो!

तुम उसकी मीठी वाणी को,
क्षुब्ध ऋषि का श्राप न समझो!

मात्र पुत्र की आशा में न,
ईश के सम्मुख शीश झुकाओ!

पुत्री भी ईश्वर की कृति,
उसे भी हंसकर गले लगाओ!

बिन पुत्री के मानव जीवन का,
श्रंगार नहीं होता है,

घर भी रहता सूना सूना,
जितना चाहो उसे सजाओ!

पुत्री जैसी फुलवारी को,
कंटक सा संताप न समझो!  

पुत्री को अभिशाप न समझो!
उसके जन्म को पाप न समझो!"

... (चेतन रामकिशन "देव") ...

सर्वाधिकार सुरक्षित!
रचने मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित! 

1 comment:

Unknown said...

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